कुंभ में ब्रह्मचारी होते हैं नागा, अघोरी साधु

प्रयागराज में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और संत कुंभ स्नान के लिए पहुंचे हुए हैं | इन्हीं साधु-संतों में अघोरी और नागा भी शामिल हैं दोनों ही समाज से अलग रहते हैं लेकिन दोनों की साधना पद्धति में बहुत अंतर है नागाओं के नग्न रहने और अघोरियों के खुद का मल खाने और शवों से संबंध बनाने के पीछे उनकी साधना की यह बात नागा शब्द का अर्थः 'नागा' शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यह शब्द संस्कृत के 'नागा' शब्द से निकला है जिसका अर्थ 'पहाड़' से होता है और इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं 'नागा' का अर्थ 'नग्न' रहने वाले व्यक्तियों से भी है उत्तरी-पूर्वी भारत में रहने वाले इन लोगों को भी 'नागा' कहते हैं वहीं अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है उजाले की ओर'. साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है लेकिन अघोरियों को रहन-सहन के तरीके इसके बिलकुल विरुद्ध ही दिखते हैं कई अघोरियों ने मानी है कि वो इंसान का कच्चा मांस खाते हैं
अक्सर ये अघोरी श्मशान घाट की अधजली लाशों को निकालकर उनका मांस खाते हैं | वे शरीर के द्रव्य भी प्रयोग करते हैं | इसके पीछे उनका मानना है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति प्रबल होती है | वहीं जो बातें आम जनमानस को वीभत्स लगती हैं | अघोरियों के लिए वो उनकी साधना का हिस्सा है | नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकते | यहां तक कि नागा साधुओं को कृत्रिम पलंग या बिस्तर पर सोने की भी मनाही होती है. नागा साधु केवल जमीन पर ही सोते हैं यह बहुत ही कठोर नियम है | जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है