अरमानों को चकनाचूर करती फिल्म मोतीचूर चकनाचूर

कहते हैं शादी का लड्डू जो खाए वो पछताए और जो न खाए वो भी पछताए | अब शादी से जुड़ी फिल्म 'मोतीचूर चकनाचूर' लेकर बॉलीवुड एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी हाजिर हो चुके हैं | वेब सीरीज सैक्रेड गेम्स में गणेश गायतोंडे जैसे खतरनाक किरदार के बाद नवाजुद्दीन ने कॉमेडी फिल्म के जरिए लोगों को हंसाने की कोशिश तो की लेकिन नवाजुद्दीन इस कोशिश में फेल होते दिखाई दिए | फिल्म का ट्रेलर काफी मजेदार था लेकिन जब पूरी पिक्चर सामने आई तो सब कुछ धरा का धरा रह गया | फिल्म में दो परिवार ही शुरू से आखिर तक बने रहते हैं और शादी का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा होता है | दो घरों के बीच की कहानी काफी बोर कर देती है | देबमित्रा ने अपनी ही लिखी कहानी पर मोतीचूर चकनाचूर बनाई है तो फिल्म के इस हाल में बनकर सामने आने का पूरा ठीकरा उन्हीं पर फूटना है।
यही वो फिल्म है जिसके पोस्ट प्रोडक्शन में किसी तरह के दखल न देने का कानूनी नोटिस इसके निर्माताओं ने अथिया के पिता सुनील शेट्टी के लिए जारी किया था। और, फिल्म देखने के बाद समझ आता है कि सुनील शेट्टी क्यों अपनी बेटी की इस तीसरी फिल्म को लेकर परेशान रहे होंगे। निर्देशक देबमित्रा की इस फिल्म में वह मोतीचूर की उम्मीद लगाए बैठे हैं। दुबई से नौकरी छोड़कर आए 36 साल के पुष्पेंद्र त्यागी को किसी भी तरह बस एक बीवी चाहिए। इसके लिए उसकी कोई खास पसंद भी नहीं है। पसंद तो क्या वह नापसंद की हद तक जाकर भी शादी करने को तैयार है। पड़ोस की 25 साल की एनी को विदेश जाकर अपनी फोटो सोशल मीडिया पर डालनी हैं। उसे दूल्हा एनआरआई चाहिए जो उसकी विदेश में बसने की टिकट और वीजा दोनों बन सके। फिल्म में दोनों के परिवार हैं। घरों के बीच की दीवार है और खूब सारा हाहाकार है। बस चमत्कार नहीं है। फिल्म की कहानी दर्शकों के लिए बोझ है तो इसकी पटकथा इतनी सुस्त है कि बीच में दस पांच मिनट का ब्रेक लेकर भी लौट आएं तो कुछ ज्यादा मिस नहीं करेंगे। संवाद भूपेंद्र सिंह मेघव्रत ने लिखे हैं और ये बजाय किरदारों को स्थापित करने के उनका रंग बदरंग करते हैं। नमूना है, सुहागरात के बाद चौबारे में जमी पड़ोसियों की भीड़ देखकर त्यागी का ये संवाद, बीवी हम लाए, मनोरंजन मोहल्ले का हो रहा है।
इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी का अभिनय ऐसा है कि जैसे सेक्रेड गेम्स का गणेश गायतोंडे शादी करने की जिद लेकर निकल पड़ा हो। चेहरे पर निरापद भाव। कैमरे को देखकर बिना किसी खास देह संतुलन के बोले गए संवाद। और, कहानी के किसी भी किरदार के साथ त्यागी के किरदार तालमेल न बन पाना। यही हाल अथिया का है। हां, साथी कलाकारों में विभा छिब्बर और करुणा पांडे जरूर प्रभावित करती हैं। फिल्म एक निर्देशक का कोई दृष्टिकोण भी लेकर नहीं आती। सुंदर न होना या फिर किसी खास देश का वासी होना अब सामाजिक कमी नहीं है। लेकिन, इन पर निशाना साधना एक बुद्धिजीवी इंसान की अपने हुनर पर पकड़ न होने की निशानी है। तकनीकी टीम भी निर्देशक ने कुछ खास नहीं चुनी। सुहास गुजराती की सिनेमैटोग्राफी और प्रवीण की एडिटिंग में सुधार की बहुत गुंजाइश दिखती है। इस वीकएंड अगर मूवी आउटिंग का प्लान है तो मोतीचूर चकनाचूर को आप स्किप कर सकते हैं।