गुप्त नवरात्रि चल रही है

गुप्त नवरात्र 2019 मंगलवार यानि 5 फरवरी से शुरू हो चुकी है। गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ़ में ही पड़ती है । इस नवरात्रि में गुप्त पूजा यानी कि तंत्र विद्या सीखी जाती है,गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। ये दस महाविद्याएं हैं - काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी। इस नवरात्र की पूजा विधि चैत्र और शारदीय नवरात्रि से बिल्कुल अलग होती है और यही कारण है कि गुप्त नवरात्रि अन्य नवरात्र से बिल्कुल अलग और खास होते हैं।कहते हैं इन नवरात्रों में मां भगवती की देर रात गुप्त रूप से पूजा की जाती है और इसलिए इन्हे गुप्त नवरात्र कहा जाता है।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि
-इस व्रत में मां दुर्गा की पूजा देर रात ही की जाती है।
-मूर्ति स्थापना के बाद मां दुर्गा को लाल सिंदूर, लाल चुन्नी चढ़ाई जाती है
- नारियल, केले, सेब, तिल के लडडू, बताशे चढ़ाएं और लाल गुलाब के फूल भी अर्पित करें
- गुप्त नवरात्रि में सरसों के तेल के ही दीपक जलाएं
-ॐ दुं दुर्गायै नमः का जाप करना चाहिए
दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।
त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।।
इस काल के माता सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया था। नौ दुर्गा भी पार्वती का ही रूप हैं। इस माता सती और पार्वती की पूजा-साधना करना सनातन धर्म का मार्ग है बाकि की पूजा आराधना सनातन धर्म का हिस्सा नहीं है इन दस महाविद्या में से किसी एक की नित्य पूजा अर्चना करने से लंबे समय से चली आ रही बीमार, भूत-प्रेत, अकारण ही मानहानी, बुरी घटनाएं, गृहकलह, शनि का बुरा प्रभाव, बेरोजगारी, तनाव आदि सभी तरह के संकट तत्काल ही समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति परम सुख और शांति पाता है। इन माताओं की साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक मानी गई है पुराणों अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस इनकार पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपनी शक्ति की झलक दिखला दी। इस अति भयंकरकारी दृश्य को देखकर शिवजी घबरा गए। क्रोध में सती ने शिव को अपना फैसला सुना दिया, 'मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी ही। या तो उसमें अपना हिस्सा लूंगी या उसका विध्वंस कर दूंगी।'हारकर शिवजी सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से पूछा- 'कौन हैं ये?' सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।' यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।
दस महा विद्या :
1.काली,
2.तारा,
3.त्रिपुरसुंदरी,
4.भुवनेश्वरी,
5.छिन्नमस्ता,
6.त्रिपुरभैरवी,
7.धूमावती,
8.बगलामुखी,
9.मातंगी और
10.कमला।
प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)
*नाम : माता कालिका
*शस्त्र : त्रिशूल और तलवार
*वार : शुक्रवार
*दिन : अमावस्या
*ग्रंथ : कालिका पुराण
*मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहआ