राज्य

कर्मचारी हितों की चिंता हो तो राष्ट्रीय पेंशन योजना की बारीकियों को समझ लेते अखिलेश

प्रदेश के कर्मचारियों को बरगलाकर येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने का ख्याली पुलाव पका रहे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को न तो राष्ट्रीय पेंशन योजना का ज्ञान है और न ही उन्हें कर्मचारियों के हितों की चिंता। यदि उन्हें कर्मचारियों के पेंशन की इतनी ही चिंता होती तो अपने कार्यकाल में वह राज्य के कर्मचारियों के हित में हजारों करोड़ रुपये का अंशदान बाकी नहीं छोड़ते। भाजपा सरकार ने कर्मचारियों के हित मे अपने हिस्से का नियमित अंशदान भुगतान करते हुए अखिलेश सरकार द्वारा बकाया छोड़े गए अंशदान का भी भुगतान किया है। अखिलेश को वाकई कर्मचारियों के पेंशन की फिक्र है तो उन्हें राष्ट्रीय पेंशन योजना की उन बारीकियों को भी समझ लेना चाहिए जो कर्मचारियों के बुढ़ापे की लाठी को मजबूत करने को प्रतिबद्ध हैं।
मंगलवार को जारी एक बयान में खन्ना ने राष्ट्रीय पेंशन योजना को लेकर अखिलेश यादव द्वारा दिए जा रहे बयानों से भ्रम पैदा करने की कोशिशों का माकूल जवाब दिया। उन्होंने बताया कि  उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 01 अप्रैल 2005 से नयी परिभाषित अंशदान पेंशन योजना यानी राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू की गयी। ऐसे सभी सरकारी कर्मचारी और राज्य सरकार से अनुदानित शिक्षण संस्थाओं व ऐसी स्वायत्तशासी संस्थाओं जिनमे 01 अप्रैल 2005 के पूर्व पुरानी पेंशन योजना लागू थी, के ऐसे कर्मचारी जिनकी नियुक्ति 01 अप्रैल, 2005 को या उसके बाद हुयी है। राष्ट्रीय पेंशन योजना से आच्छादित हैं।
खन्ना ने बताया कि इस योजना में कर्मचारी के मूल वेतन तथा महंगाई भत्ते के योग के 10 प्रतिशत के बराबर अभिदान अपने पेंशन खाते में करेगा तथा 14 प्रतिशत के बराबर अंशदान राज्य सरकार संबंधित स्वायत्तशासी संस्था द्वारा नियोक्ता अंशदान के रूप में किया जाता है। प्रारम्भ में नियोक्ता अंशदान भी 10 प्रतिशत ही था परन्तु योजना को कर्मचारियों के लिए अधिक लाभदायक बनाने हेतु भाजपा सरकार ने  01 अप्रैल, 2019 से नियोक्ता अंशदान की राशि 10 प्रतिशत से बढ़ा कर 14 प्रतिशत की गयी।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने 2019 के पहले के तुलनात्मक कम अंशदान को लेकर भी यह पहल की कि कर्मचारियों का हित किसी भी तरह से प्रभावित न होने पाए। इसके लिए 01 अप्रैल, 2005 से 31 मार्च, 2019 तक कर्मचारियों को हुयी क्षतिपूर्ति की भरपाई हेतु यह व्यवस्था की गयी है कि यदि किसी कर्मचारी के वेतन से कटौती कर ली गयी परन्तु काटी गयी धनराशि सरकारी अंशदान के साथ भेजने में यदि विलंब हुआ तो जीपीएफ पर लागू ब्याज दर के आधार पर सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान किया जायेगा 31 मार्च 2019 तक कर्मचारी अंशदान के बिना भी नियोक्ता अंशदान जमा करने तथा अंशदान की नियत तिथि से अंशदान जमा होने की तिथि तक ब्याज के साथ जमा की जायेगी।
खन्ना ने बताया कि उक्त निर्णयों के क्रियान्वयन हेतु वर्ष 2019-20 एवं 2020-21 के बजट में क्रमश: रूपये 4978 करोड़ तथा रूपये 4578 करोड़, कुल रूपये 9556 करोड बजट के माध्यम से उपलब्ध कराये गये। सपा प्रमुख इन तथ्यों से भले अनभिज्ञ बन रहे हों लेकिन प्रदेश के कर्मचारियों को यह सारी जानकारी है। यही वजह है कि वर्तमान पेंशन की बुराई कर अपनी चुनावी दाल गलाने की अखिलेश की कोशिशें उसी तरह धराशायी हो गई हैं जैसे सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना। उन्होंने कहा कि अपने शासन के दौरान अखिलेश को कर्मचारियों की बजाय परिवार और उनके संरक्षण में पल रहे अपराधियों की ही चिंता रही। वर्तमान पेंशन से उन्हें इतनी ही परेशानी थी तो अपने पिता मुलायम सिंह यादव के शासन में लागू इस योजना को वह समाप्त कर सकते थे। पर न तो उन्होंने ऐसा किया और न ही राष्ट्रीय पेंशन योजना में सरकार की तरफ से अंशदान ही जमा किया। आखिर अब किस मुंह से वह कर्मचारियों के हित का स्वांग रचा रहे हैं।

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