गाँधी जी की गरीबी सबसे महंगी, गरीबी

मोहन दास करम चंद गाँधी , मतलब गाँधी जी मतलब महात्मा गाँधी , देखने में गरीब इंसान जो बकरी का दूध का उपयोग करता है पीता है जिसको हम कह सकते हैं महंगी- गरीबी” अर्थात अंग्रेजी में एएक्सपेंसिव-पावर्ट।
महात्मा गांधीजी ने प्रण लिया था कि वे केवल बकरी का दूध ही पियेंगे। आज भी बकरी का दूध महंगा है, और मुश्किल से मिलता है। तब भी महंगा ही था। गाँधी जी ने अपने आश्रम में तो बकरी पाल रखी थी मगर जब वह घूमते थे तब ज़रूरी नही की हर जगह बकरी का दूध आसानी से मिलता ही हो। इस बात का वर्णन स्वयं गांधीजी की पुस्तकों में है, कैसे लंदन में बकरी का दूध ढूंढा जाता था, महंगे दामों में खरीदा जाता था क्योंकि गांधी जी गरीब थे, वो सिर्फ बकरी का दूध ही पीते थे ।
एक बार सरोजनी नायडू ने उनको मज़ाक में कहा भी था कि आप को गरीब रखना हमें बहुत महंगा पड़ता है । खुशवंत सिंह साहब अपनी किताब में लिखते है क़ि गांधी जी ने दूध के लिए जो बकरियां पाली थी, उनको नित्य साबुन से नहलाया जाता था, उनको प्रोटीन खिलाया जाता था। उनपर 20 रुपये प्रतिदिन का खर्च होता था। 90 साल पहले 20 रुपये का क्या कीमत होगी आप समझ सकते हैं। ..
अंग्रेज अधिकारी नहीं चाहते थे की गांधी जी तीसरे दर्जे में यात्रा करें क्योकि पीड़ित लाभ उनको मिल सकता था, और गरीबी क़ि तस्वीर समाचार पत्र में ना छपे इसलिए अंग्रेज उनको विशेष ट्रेन में यात्रा करवाते थे जिसमें कुल 3 डिब्बे होते थे । जो केवल गांधी जी और उनके साथियों के लिए होते थे, क्योंकि हर स्टेशन पर लोग उनसे मिलने आते थे गांधी जी जब भी तीसरे दर्जे में रेल सफर करते थे तो वह सामान्य तीसरा दर्जा नहीं होता था। ये सारा खर्चा ट्रस्ट से होता था। जो अंग्रेजो को दिया जाता था। इसीलिए एक बार मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था क़ि जितने पैसो में मैं प्रथम श्रेणी यात्रा करता हूँ उस से कई गुना में गांधीजी तृतीय श्रेणी की यात्रा करते हैं।
गरीब दिखने के लिए गाँधी जी के लिए बहुत खर्चा करना पड़ता है। ऐसे थे हमारे गरीब गांधीजी ।