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सिर्फ वर्चुअल रैली ही नही घर-घर जनसंपर्क अभियान पर भी जोर देगी भाजपा
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर कोरोना का ऐसा साया छा गया कि चुनाव आयोग को रैलियों पर रोक लगानी पड़ी। ऐसी स्थिति में सभी राजनीतिक दलों को सोशल मीडिया के जरिये ही प्रचार करने को मजबूर होना पड़ा। लगभग हर रोज ही वर्चुअल रैलियां हो रही हैं, लेकिन सत्ताधारी भाजपा सिर्फ इसी के सहारे नहीं बैठी है। भाजपा के सभी बड़े नेता अब चुनाव प्रचार में जमीन पर उतर गए हैं। वे रैलियां तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन जनसंपर्क सघनता से शुरू कर दिया है। अमित शाह, जेपी नड्डा, अनुराग ठाकुर, सीएम योगी आदित्यनाथ सहित सभी नेता लगातार विभिन्न जिलों के दौरे पर रह रहे हैं।
पहले चरण के तहत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 सीटों पर 10 फरवरी को वोटिंग होनी है। अभी तक चुनाव आयोग ने रैलियों और नुक्कड़ सभाओं पर से रोक नहीं हटाई है, लेकिन भाजपा ने इसका तोड़ निकाल लिया है। भाजपा के सभी बड़े नेता पहले चरण के तहत वोटिंग वाले जिलों में उतर गए हैं। गृह मंत्री अमित शाह मेरठ, बागपत और शामली के दौरे पर हैं. वे अलग-अलग समुदाय के लोगों से बातचीत करेंगे।
वहीं बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बिजनौर के दौरे पर हैं। इस जिले में यूं तो दूसरे चरण में मतदान होना है, लेकिन नड्डा की सक्रियता लगातार बनी हुई है। उधर सीएम योगी आदित्यनाथ अलीगढ़ और बुलंदशहर के दौरे पर हैं। भाजपा के सभी नेताओं का फोकस डोर-टू-डोर कैम्पेन पर बढ़ता जा रहा है।
बाकी दलों के नेता भी चुनाव प्रचार तो कर रहे हैं, लेकिन उनका जोर या तो प्रेस कॉन्फ्रेंस पर है या वर्चुअल संवाद पर। भाजपा को टक्कर दे रहे अखिलेश यादव हर रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं। वे अपनी हर पीसी में एक नया वादा जनता के सामने रखते हैं। इसके अलावा सपा के बड़े नेता वर्चुअली संवाद कर रहे हैं, यानी फेसबुक लाइव या फिर यूट्यूब के सहारे अपनी बात पहुंचा रहे हैं। अखिलेश यादव कब खुद फील्ड में निकलेंगे इस सवाल के जवाब में सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा कि पार्टी का काडर डोर-टू-डोर कैम्पेन में लगा है। सभी फ्रन्टल संगठनों के नेता और कार्यकर्ता लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं।
वर्चुअल संवाद और डोर-टू-डोर कैम्पेन में कई बड़े अंतर हैं। बिहार, हरियाणा और अब यूपी चुनाव में काम कर रहे सोशल मीडिया स्ट्रैटजिस्ट सुलभ सिंह ने बताया कि वर्चुअल संवाद प्रभावी तो है लेकिन जनता के सामने खड़े होकर नेता के बात करने से प्रभाव अलग पड़ता है। ऐसा करने पर नेताओं को जनता के मन में छुपी बात को समझने का भी मौका मिलता है। जब दोनों साथ हो जाते हैं तो जनसंपर्क की धार और मजबूत हो जाती है।