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सूत्रों के मुताबिक डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और स्वतंत्र देव सिंह नही लड़ेंगे चुनाव
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में एक ओर जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य चुनावी मैदान में ताल ठोकते नजर आएंगे, वहीं डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह चुनाव नहीं लड़ेंगे। सूत्रों ने खबर दी है कि डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और स्वतंत्र देव सिंह यूपी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में इसे लेकर फैसला भी हो चुका है।
सूत्रों की मानें तो केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में इन दोनों के चुनाव न लड़ने का फैसला इसलिए हुआ है ताकि भाजपा 300 + लक्ष्य को हासिल कर सके। सूत्रों ने कहा कि दिनेश शर्मा और स्वतंत्र देव सिंह खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे, जबकि दोनों ही नेता 300 + के लक्ष्य को साधने के लिए पार्टी के लिए प्रचार-प्रसार करेंगे। बता दें कि यूपी चुनाव में पहली बार योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां से आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद भी लड़ रहे हैं।
उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा का राजनैतिक सफर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी के खास माने जाने वाले डॉ. दिनेश शर्मा का राजनैतिक सफर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा है। शर्मा की राजनीतिक प्रतिभा को सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देखी था। भारतीय जनता पार्टी के कई राजनेताओं की तरह, दिनेश शर्मा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की। कई सालों तक शाखा से जुड़े रहने के बाद दिनेश शर्मा को राजनीतिक रूप से कुछ छोटी मोटी जिम्मेदारियां दी जाने लगी। अपने काम में खरे उतरने के बाद पार्टी ने उन्हें भाजपा के भारतीय जनता युवा मोर्चा (युवा विंग) का प्रदेश अध्यक्ष नामित किया गया।
इसके बाद में दिनेश शर्मा 2006 में लखनऊ के मेयर के रूप में चुने गए। वह 2012 में फिर से चुनाव के लिए खड़े हुए और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नीरज बोरा को 171000 से अधिक मतों से हराया। 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की सफलता में उनके योगदान के बाद, 16 अगस्त 2014 को वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। 19 मार्च 2017 को, उन्हें उत्तर प्रदेश के दो उप मुख्यमंत्रियों में से एक के रूप में नियुक्त किया गया था। वह उत्तर प्रदेश विधान सभा के निर्वाचित सदस्य नहीं हैं। वह 9 सितंबर 2017 को विधान परिषद (उच्च सदन) के लिए चुने गए। उन्हें उच्च और माध्यमिक शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी विभागों के मंत्रालय आवंटित किए गए थे।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का राजनीतिकनामा
स्वतंत्र देव सिंह ने अपनी राजनीति की शुरुआत छात्रसंघ चुनाव से की थी। स्वतंत्र देव सिंह ने जालौन के उरई स्थित डीवीसी कॉलेज से छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए। इसके बाद 1986 में आरएसएस से जुड़कर स्वयंसेवक के रूप में प्रचारक के तौर पर काम करना शुरू किया। 1988-89 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में संगठन मंत्री के रूप में काम किया। 1991 में भाजपा कानपुर के युवा शाखा के मोर्चा प्रभारी बने। 1994 में बुन्देलखंड के युवा मोर्चा के प्रभारी के रूप में राजनीति में आए।
1996 में स्वतंत्र देव सिंह युवा मोर्चा के महामंत्री नियुक्त हुए। 1998 में दोबारा भाजपा प्रदेश युवा मोर्चा के महामंत्री बनाए गए। 2001 में भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने। 2004 में स्वतंत्र देव सिंह बुंदेलखंड से झांसी-जालौन-ललितपुर विधान परिषद के सदस्य चुने गए और प्रदेश महामंत्री भी बनाए गए। स्वतंत्र देव सिंह 2004 से 2014 तक दो बार प्रदेश महामंत्री रहे। इससे पहले 2010 में भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए और 2012 में फिर महामंत्री बने। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा से स्वतंत्र देव सिंह ने उरई की कालपी सीट से चुनाव लड़ा था। यहां कांग्रेस की प्रत्याशी उमा कांति के सामने स्वतंत्र देव सिंह की जमानत जब्त हो गई थी। इसके बाद भी उन्हें भाजपा ने एमएलसी बनाया।
2014 में हुए आम चुनाव स्वतंत्र देव के लिए महत्वपूर्ण रहा। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में होने वाली रैलियों के आयोजन की कमान उन्हें दी। यहीं से वह पीएम मोदी और अमित शाह के करीब आए। बुंदेलखंड में मजबूत पकड़ के चलते 2019 में अधिकतर सीटों पर टिकट उनकी सलाह पर ही दिए गए। भाजपा ने यहां से सभी 19 सीटें जीती तो उनका कद और बढ़ गया। वहीं, भाजपा को जानने वाले लोग यह मान रहे हैं कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के अपना दल (एस) के कुर्मी वोटों में सेंध लगाने के लिए स्वतंत्र देव सिंह को भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।