कवितायें और कहानियाँमनोरंजन
एक कविता तुम्हारे लिये
एक कविता तुम्हारे लिये
एक कविता तुम्हारे लिये,
सोचती हूँ कि लिखुंगी मैं,
पर तुम उसे पढ़ोगे,
पहले ये वादा तो करो;
अपने दिल को खोलकर,
उसमें भावों को भरूँगी मैं,
पर तुम उसे महसूस करोगे,
पहले ये इरादा तो करो;
जो नहीं कहती हूँ कभी,
वो भी उसमें कहूँगी मैं,
पर उन्हें समझने के जतन,
तुम भी, कुछ ज्यादा तो करो;
ठीक है, अपना सब कुछ छोड़ कर,
तुम्हारे हिसाब से ढलुँगी मैं,
पर मेरे लिए तुम भी,
अपने अहम को आधा तो करो।
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—-(Copyright@ भावना मौर्य “तरंगिणी”)—-