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एक कविता तुम्हारे लिये

एक कविता तुम्हारे लिये

एक कविता तुम्हारे लिये,
सोचती हूँ कि लिखुंगी मैं,
पर तुम उसे पढ़ोगे,
पहले ये वादा तो करो;

अपने दिल को खोलकर,
उसमें भावों को भरूँगी मैं,
पर तुम उसे महसूस करोगे,
पहले ये इरादा तो करो;

जो नहीं कहती हूँ कभी,
वो भी उसमें कहूँगी मैं,
पर उन्हें समझने के जतन,
तुम भी, कुछ ज्यादा तो करो;

ठीक है, अपना सब कुछ छोड़ कर,
तुम्हारे हिसाब से ढलुँगी मैं,
पर मेरे लिए तुम भी,
अपने अहम को आधा तो करो।
★★★★★
—-(Copyright@ भावना मौर्य “तरंगिणी”)—-

Read more….कितनी बार कहा तुमसे

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