
हमारी संस्कृति में नृत्य का बहुत मान है। आज आपको कथक नृत्य शैली की विख्यात प्रख्यात प्रतिपादक दमयंती जोशी के बारे में बताते है। दमयंती जोशी भारत की पहली महिला कथक नर्तकी थीं। जिनका जन्म 5 सितंबर 1928 में मुंबई में एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनकी माँ का नाम वत्सला जोशी था।
दमयंती जोशी जनरल डॉ साहिब सिंह सोखी और उनकी पत्नी लीला सोखी के घर में पली-बढ़ीं। बाद में लीला सोखी को मैडम मेनका के नाम से जाना जाने लगा। दमयंती जोशी ने 1930 के दशक में मैडम मेनका की मंडली में नृत्य करना शुरू किया। प्रारंभ में यह नृत्य मंदिरों में किया जाता था। उनका मानना था कि कथक कहानी कहने की कला है। वह मुंबई के श्री राजराजेश्वरी भरत नाट्य कला मंदिर में पहली छात्रा थीं, जहां उन्होंने गुरु टी. के. महालिंगम पिल्लई से भरत नाट्यम सीखा, जो नट्टुवनार के बीच में थे।
दमयंती जोशी ने जयपुर घराने के सीताराम प्रसाद से कथक सीखा और 1950 के दशक के बाद लखनऊ घराने के अच्चन महाराज, लच्छू महाराज और शंभू महाराज से प्रशिक्षण लिया, इस प्रकार दोनों परंपराओं की बारीकियों को आत्मसात किया और स्वयं को एक सफल एकल कथक नर्तक के रूप में स्थापित किया। इन्होंने दुनिया के कई हिस्सों की यात्रा की। उन्हें आज़ादी के उपरांत 1970 में पद्मश्री, 1968 में नृत्य के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और यू.पी. लखनऊ में कथक केंद्र में सम्मानित किया गया था। वह कथक नृत्य में “साड़ी” को पोशाक के रूप में पेश करने वाली पहली व्यक्ति थीं।
वह बीरेश्वर गौतम की गुरु भी थीं। उन्होंने लखनऊ के इंदिरा कला विश्वविद्यालय, खैरागढ़ और कथक केंद्र में कथक अध्यापिका के रूप में पढ़ाया। उन्हें 1971 में फिल्म डिवीजन, भारत सरकार द्वारा कथक पर वृत्तचित्र में चित्रित किया गया है और फिर उनके जीवन पर हुकुमत सरीन द्वारा निर्देशित “दमयंती जोशी” नामक एक फिल्म 1973 में बनाई गई थी। उनका निधन 19 सितंबर 2004 को मुंबई में उनके घर पर हुआ। वह बीमार थीं और स्ट्रोक का दौरा पड़ने के बाद लगभग एक साल से बिस्तर पर थीं।