आगे बढ़ने की चाहत

आगे बढ़ने की चाहत
चलती हूँ, गिरती हूँ, फिर मैं सँभलती हूँ।
फिर भी, हर कदम आगे बढ़ने का दम भरती हूँ।
उड़ना चाहती हूँ मैं आँधियों की तरह,
टिकना चाहूँ जमीं पर पर्वतों की तरह,
पर किसी भी क्षण, अहम् में आने से मैं डरती हूँ।
जीवन जीने का मेरा बस यही अरमान है,
सहज रहना और सरल रहने में ही मेरी शान है।
ज्यादा पाने की चाहत रही न कभी,
पर कम भी न हो मुझे, ईश्वर से बस यही गुज़ारिश करती हूँ।
इस भागती दुनिया की बस यही परेशानी है,
ज्यादा तपे तो जल जाओगे और ज्यादा बहे तो गल जाओगे,
यहाँ तो हर राह पर ही एक छोर पर आग, तो दूसरे छोर पर पानी है
इन राहों के बीच में सामंजस्य रहे सदा,
अपने सफर में मैं बस यही कोशिश करती हूँ।
बोलने वालों का मुंह कभी बंद नहीं होता,
दुनिया की चिंता करने से अपना दुःख कभी कम नहीं होता
अच्छे कर्मों की कमान अपने हाँथों में रखो।
ये बोलने वाली दुनियां भी एक दिन, तुम्हारे क़दमों में ही झुक जानी है।
जिंदगी मिलती है एक बार, खुलकर जीना चाहती हूँ इसे,
इस चाहत को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत करती हूँ।
हजारों ख़्वाब बनना और टूटना तो है जिंदगी का फ़लसफ़ा,
पर इस वास्तविकता को जीते हुए मैं हर दिन नए ख़्वाब बुनती हूँ।
इसीलिए, चलती हूँ, गिरती हूँ, फिर मैं सँभलती हूँ।
और, हर कदम आगे बढ़ने का दम भरती हूँ।
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—-(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—-