तकदीरें नहीं मिलतीं
तेरे-मेरे हाथों की,
लकीरें नहीं मिलतीं,
हम दोनों की शायद,
तकदीरें नहीं मिलतीं,
जो बाँध सकें हमें,
एक ही बेड़ियों में,
ढूँढने से भी ऐसी,
ज़ंजीरें नहीं मिलतीं,
जो बनायीं थी मैंने,
तेरे-मेरे साथ की,
जाने कहाँ गयी अब,
वो तस्वीरें नहीं मिलतीं,
देकर जिसे मैं बना सकूँ,
तुझे अपना सदा के लिए,
खोयी हुई मेरी वो,
जागीरें नहीं मिलतीं
तेरे-मेरी शायद,
तकदीरें नहीं मिलतीं।
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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—