कर्ण के सबसे अच्छे गुण क्या थे जिनकी पांडव भी प्रसंशा करते थे ?

कर्ण के जैसा दानी शायद ही कोई हुआ हो, कर्ण की दानशीलता के ऊपर एक लघु कथा काफी चर्चित है । एक बार श्री कृष्ण भरी सभा में कर्ण की दानवीरता की प्रशंसा कर रहे थे। अर्जुन भी उस समय सभा में उपस्थित थे, वे कृष्ण द्वारा कर्ण की दानवीरता की प्रशंसा को सहन नहीं कर पा रहे थे। भगवान कृष्ण ने अर्जुन की ओर देखा और पल भर में ही अर्जुन के मनोभाव जान लिए। श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्ण की दानशीलता का ज्ञान कराने का निश्चय किया।
कुछ ही दिनों बाद नगर में एक ब्राह्मण की पत्नी का देवलोक गमन हो गया। ब्राह्मण अर्जुन के महल में गया और अर्जुन से विनती करते हुए कहा – “धनंजय! मेरी पत्नी मृत्यु हो गयी है, उसने मरते हुए अपनी आखरी इच्छा जाहिर करते हुए कहा था कि मेरा दाह संस्कार चन्दन की लकड़ियों से ही करना, इसलिए क्या आप मुझे चन्दन की लकड़ियाँ दे सकते हैं?
ब्राह्मण की बात सुनकर अर्जुन ने कहा – “क्यों नहीं?” और अर्जुन ने तत्काल कोषाध्यक्ष को तुरंत पच्चीस मन चन्दन की लकड़ियाँ देने की आज्ञा दी, परन्तु उस दिन न तो भंडार में और न ही बाज़ार में चन्दन की लकड़ियाँ उपस्थित थीं। कोषाध्यक्ष ने आकर अर्जुन को सारी व्यथा सुनाई और अर्जुन के समक्ष चन्दन की लकड़ियाँ ना होने की असमर्थता व्यक्त की। अर्जुन ने भी ब्राह्मण को अपनी लाचारी बता कर खाली हाथ ही वापस भेज दिया।
ब्राह्मण अब कर्ण के महल में पहुंचा और कर्ण से अपनी पत्नी की आखरी इच्छा के अनुरूप चन्दन की लकड़ियों की मांग की। कर्ण के समक्ष भी वही स्थति थी, न तो महल में और न ही बाज़ार में कहीं चन्दन की लकड़ियाँ उपस्थित थी। परन्तु कर्ण ने तुरंत अपने कोषाध्यक्ष को महल में लगे चन्दन के खम्भे निकाल कर ब्राह्मण को लकड़ियाँ देने की आज्ञा दे दी।चन्दन की लकड़ियाँ लेकर ब्राह्मण चला गया और अपनी पत्नी का दाह संस्कार संपन्न किया।
शाम को जब श्री कृष्ण और अर्जुन टहलने के लिए निकले तो देखा कि वही ब्राह्मण शमशान पर कीर्तन कर रहा है| जिज्ञासावश जब अर्जुन ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने बताया कि कर्ण ने अपने महल के खम्भे निकाल कर मेरा संकट दूर किया है, भगवान उनका भला करे।
यह देखकर भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन से बोले, “अर्जुन! चन्दन के खम्भे तो तुम्हारे महल में भी थे लेकिन तुम्हें उनकी याद ही नहीं आई। यह सुनकर अर्जुन लज्जित हो गए और उन्हें विश्वास हो गया की क्यों कर्ण को लोग “दानवीर कर्ण” कहते हैं।