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करतारपुर कॉरिडोर में 75 साल बाद मिले बिछड़े परिवार, दर्द इतना, कि शायद कलम बयां न कर पाए

सन 1947 ये दिन हमारे लिए सिर्फ एक इतिहास हैं लेकिन बहुत से लोगो के लिए ये कभी न भूलने वाली याद हैं, बहुत से लोगो के दिलो में आज भी इस साल को लेकर काफी दर्द छुपा हुआ हैं, इस साल ने जाने कितनी जिंदगियों को एक दूसरे से अलग कर दिया था, इस दिन काफी लोग ही एक दूसरे से अलग नहीं हुए थे, बल्कि देश का दिल, देश का एक अभिन्न अंग हमसे अलग हुआ था, इस बटवारे ने हज़ारो लोगो को अलग कर दिया था। इसी बीच भारत के बंटवारे के 75 साल बाद एक बिछड़ा परिवार फिर से एक हुआ हैं जिसमे एक भाई और बहनआखिरकार फिर से एक हो गए हैं ।

सूत्रों के मुताबिक, 81 साल की महेंद्र कौर अपने परिवार के साथ भारत से गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर घूमने गई थीं, इसी तरह 78 साल के शेख अब्दुल अजीज अपने परिवार के साथ पाकिस्तान के आजाद कश्मीर से करतारपुर पहुंचे हुए थे। आज़ाद कश्मीर के रहने वाले ज़ईफ़ अल-उमर शेख अब्दुल अज़ीज़ 75 साल बाद 1947 में अपनी बहन महेंद्र कौर से मिले, इतने लंबे समय के बाद जब दोनों मिले तो दोनों बड़े ही भावुक हो गए थे ये दृश्य जिसने भी देखा उसकी आँखे भर आयी। इस बीच दोनों ने मिलकर जमकर बाते भी की

जानिये पूरा मामला

1974 में भारत के विभाजन के दौरान, सरदार भजन सिंह का परिवार (जो भारतीय पंजाब में रहता था) वो बटवारे के दौरान अलग हो गया था। विभाजन के बाद, शेख अब्दुल अज़ीज़ आज़ाद कश्मीर चले गए, जबकि उनके परिवार के अन्य सदस्य भारत में ही रह गए। शेख अब्दुल अजीज कहते हैं कि 75 साल पहले अपने परिवार से बिछड़ने के बाद उन्होंने कई साल दर्द में गुजारे, उन्होंने अपने परिवार को खोजने की बहुत कोशिश की लेकिन उन सब का कोई भी पता नहीं चला, उन्होंने बताया कि मेरी शादी काफी कम उम्र में हो गई थी, लेकिन वह हमेशा से अपने माता-पिता, रिश्तेदारों और अपने पूरे परिवार के साथ फिर से रहना चाहते थे लेकिन समय को ये मंजूर न रहा उनके परिवार के सदस्यों ने खुलासा किया कि उन्हें एक सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से पता चला कि भारत के विभाजन के बाद एक व्यक्ति अपनी बहन से अलग हो गया था।

सोशल मीडिया पर चल रही तलाश के चलते दोनों परिवार संपर्क में आए तो पता चला कि महेंद्र कौर और शेख अब्दुल अजीज भाई-बहन हैं जो 75 साल पहले अलग हो गए थे।

बहुत दिनों के बाद जब दोनों मिले, तो महेन्द्र कौर आनंद से भर उठी , उन्होंने अपने भाई का हाथ चूम-चूम कर उन्हें गले लगा लिया। इस शुभ अवसर पर करतारपुर प्रशासन ने दोनों परिवारों को माला पहनाई और मिठाइयां भी बांटी।

दोनों परिवारों ने एक साथ गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर का दौरा किया और भोजन किया, और एक दूसरे को तोहफे भी दिए, ऐसे ‘में करतारपुर कॉरिडोर को प्यार, शांति और एकता के कॉरिडोर के नाम देना कोई गलत नहीं होगा महेन्द्र कौर ने कहा कि आज करतारपुर कॉरिडोर ने 75 साल पहले बिछड़े दो भाई-बहनों को एक साथ ला दिया है।

जिन्हे सोच लगा ये हमें छोड़ कहा जायेंगे

आज उनकी ही मुलाकातों ने ना जाने क्यों रुला दिया

कुछ तो बिछड़े मिल ही जाते हैं इस जिंदगी को

पर ना जाने कितनो को इस वक्त ने भुला दिया

Writer Mohit Singh Negi

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