क्रॉप वेदर वॉच ग्रुप की वर्ष 2023-24 की चतुर्थ बैठक संपन्न
क्रॉप वेदर वॉच ग्रुप की वर्ष 2023-24 की चतुर्थ बैठक पीयूष कुमार शर्मा, सचिव उप्र कृषि अनुसंधान परिषद की अध्यक्षता में बुधवार को उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद के सभाकक्ष में सम्पन्न हुई। बैठक में आंचलिक भारतीय मौसम विज्ञान केन्द्र, अमौसी, लखनऊ, कृषि विश्वविद्यालयों के मौसम वैज्ञानिक, धान प्रजनक, पादप रोग वैज्ञानिक, आई. सी. ए. आर. संस्थानों, रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर, लखनऊ, कृषि विभाग, पशुपालन विभाग, गन्ना विभाग, रेशम विभाग तथा परिषद के अधिकारियों/वैज्ञानिकों ने भाग लिया गया।
25 जून से प्रदेश भर में मानसूनी वर्षा जारी है जिसके 29 तारीख से बढ़ने की संभावना है। आगामी सप्ताह में संभावित मौसम की दृष्टि से किसानों हेतु धान, मक्का, श्री अन्न, अरहर, तिल, मूंगफली, बागवानी, पशुपालन तथा मत्स्य पालन के संदर्भ में कुछ सुझाव जारी किए गए हैं। धान की पौंध को नर्सरी में खैरा रोग का प्रकोप होने पर नियंत्रण हेतु 5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट को 2.5 कि.ग्रा. यूरिया के साथ 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें उसके उपरांत यदि लक्षण दिखाई दे तो 10 से 15 दिन बाद पुनः छिड़काव करें। जिन कृषकों ने अभी तक नर्सरी नहीं डाली है वह धान की सीधी बुवाई करें। ड्रम सीडर द्वारा धान की सीधी बुवाई हेतु किस्मों नरेन्द्र- 97. मालवीय धान-2 नरेन्द्र- 359 तथा सरजू-52 की बुवाई 50 से 55 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से करें। नर्सरी में पर्ण झुलसा का प्रकोप होने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 75 ग्रा. या एग्रीमाइसिन- 100 (100 ग्रा.) के साथ कॉपर आक्सीक्लोराइड 500 ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान की श्डबल रोपाई या सण्डा प्लाटिंग हेतु तीन सप्ताह की अवधि के पौधे की प्रथम रोपाई 20×10 से. मी. की दूरी पर करना सुनिश्चित करें।
इसी प्रकार मक्का की मध्यम अवधि की संकर किस्मों यथा दकन- 107, मालवीय संकर मक्का-2 प्रो-303 (3461) के एच 9451, के एच-510 एम. एम. एच. – 69. बायो-9637 बायो-9682 एवं संकुल प्रजातियों नवजोत पूसा कम्पोजिट – 2 श्वेता सफेद नवीन की बुवाई करें। पूर्व से बोये गये मक्का में जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
श्री अन्न में ज्वार की संकुल किस्मों यथा एस.पी.बी.-1388 (बुन्देला), सी.एस.बी. 15. वर्षा विजेता व सी. एस. बी. 13 तथा संकर प्रजातियों सी एस. एच. 23. सी. एस. एच. 13. सी. एस. एच. 18. सी. एस. एच. 14. सी. एस. एच 9. सी. एस. एच. 16 सावां की किस्मों यथा आई.पी.एम. – – 151, आई.पी. – 149 यू.पी.टी.-8. आई.पी.एम.-100 आई.पी.एम. 148 आई.पी.एम 97 तथा कोदों की किस्मों यथा जी.पी.वी.के.-3 ए.पी.के. 1, जे.के. 2. जे. के. 62. वम्बन-1 व जे. के. 6 की बुवाई करें।
अरहर की अधिक उपज हेतु उन्नत देर से पकने वाली किस्मों यथा मालवीय चमत्कार, नरेन्द्र अरहर 2. बहार अमर नरेन्द्र अरहर-1, आजाद पूसा-9 मालवीय विकास (एम.ए.6). टा-64, टा-28 चन्दा उत्कर्ष एम-13 अम्बर चित्रा, कौशल, टी.जी.-37ए व प्रकाश की बुवाई करें यथायभव मेड़ों पर ही बुवाई करें। तिल की उन्नतशील किस्मों यथा गुजरात तिल-6. आर. टी.-346 आर. टी-351, तरुण, प्रगति, शेखर टाइप-78 टाइप- 13, टाइप-4 व टाइप 12 की बुवाई करें फाइलोडी रोग से बचाव हेतु बुवाई के समय कुंड में फोरेट 10 जी. 15 किग्रा प्रति है की दर से प्रयोग करें।
मूँगफली की उन्नतिशील किस्मों चन्दा उपरहार उत्कर्ष एम-13 अम्बर चित्रा (एम. ए. 10). कौशल (जी. 201), टी.जी. 37ए. प्रकाश की बुआई जुलाई प्रथम सप्ताह तक पूर्ण कर लें इसके उपरान्त बुआई करने पर फसल में बहनिकोसिस बीमारी लगने की संभावना ज्यादा होती है। गन्ना में चोटी बेधक के प्रभावी नियंत्रण के लिये फ्यूराडन किग्रा (सकिय तत्व) या क्लोरेटेन्लीप्रोल 375 एम. एल. प्रति हे. की दर से खेत में पर्याप्त नमी की अवस्था में प्रयोग करें चूसक कीट का प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल का 200 एम. एल. / हे छिड़काव करें लाल सहन बीमारी के लक्षण दिखने पर प्रभावित पौधों को जड़ सहित निकाल कर 10-20 ग्राम ब्लीचिंग पाऊडर अथवा 0.2 प्रतिशत थायोफिनेट मिथाइल की जड़ों के पास ड्रेसिंग करें। शरदकालीन गन्ने में पोक्काबोइंग रोग दिखने पर 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम अथवा 0.2 प्रतिशत कापर आक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
खरीफ सब्जियों यथा बैंगन मिर्च एवं फूलगोभी की अगेती किस्मों की नर्सरी में बुआई करें नर्सरी को कीटों से बचाने हेतु लो टनेल पॉलीहाऊस का प्रयोग करें। तथा ऊंची बेड पर ही नर्सरी डालें नर्सरी में जल निकास की उचित व्यवस्था करें भिण्डी व लोबिया की बुआई करें हल्दी एवं अदरक की बुवाई जून में समाप्त करें नये बागों में भी इनकी बुआई की जा सकती है वर्षाकालीन सब्जियों यथा लौकी, तोरई, काशीफल व टिण्डा की बुआई करें।
बागवानी के क्षेत्र में आम के बागों में फल मक्खी की संख्या जानने एवं उसके नियंत्रण हेतु कार्बरिल 0.2 प्रतिशत$प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट या सीरा 0.1 प्रतिशत अथवा मिथाइल यूजीनाल 0.1 प्रतिशत $ मैलाथियान 0.1 प्रतिशत के घोल को डिब्बों में डालकर पेड़ों पर ट्रैप लगायें पौध प्रवर्धन हेतु आम में ग्राफ्टिंग का कार्य करें।
लम्पी स्किन रोग (एलएसडी) एक विषाणु जनित रोग है, जिसकी रोकथाम हेतु पशुपालन विभाग द्वारा टीकाकरण प्रोग्राम चलाया जा रहा है। सभी कृषक / पशु पालक अपने निकटतम पशु चिकित्सालय से सम्पर्क कर इसकी रोकथाम संबंधी उपाय एवं टीकाकरण की जानकारी ले सकते हैं बड़े पशुओं में गला घोटू बीमारी की रोकथाम हेतु एच.एस. वैक्सीन व लंगड़ी रोग की रोकथाम हेतु वी. क्यू. वैक्सीन से टीककरण करवायें। बकरियों में ई.टी. रोग की रोकथाम हेतु टीकाकरण बरसात से पहले करवाना सुनिश्चित करें। यह सुविधा सभी पशु चिकित्सालयों पर निःशुल्क उपलब्ध है। पशुओं को खुले में न बांधे क्योंकि आकाशीय बिजली के खतरे से पशुओं को शारीरिक नुकसान हो सकता है। पशुओं को ऊँचे स्थान पर बांधे।
मत्स्य पालन करने वाले किसान भाई ध्यान दें कि निगम की हैचरियों पर मत्स्य बीज उपलब्ध है। अतः सभी मत्स्य पालक अपने तालाबों में मत्स्य बीज संचय करने के लिए तैयारी पूरी कर ले और मत्स्य बीज का माँग पत्र जनपद स्तर पर मत्स्य विभाग को कार्यालय में जमा कर दें। जिन तालाबों में मछली उपलब्ध है उनमें पहली वर्षों का पानी आने से मछलियों की मृत्यु की संभावना रहती है अतः ऐसे मत्स्य पालक जिनके तालाबों में आबादी का गन्दा पानी आता है वह 250 किग्रा./हे. की दर से बुझा चूना का छिड़काव कर दें और तालाब में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए आक्सीफूलों आदि मार्केट में उपलब्ध है पहले से कम कर अपने पास रख लें ताकि समय से इसका उपयोग किया जा सके।
रेशम पालक कृषकों को सलाह दी गई है कि रोपित शहतूत एवं अर्जुन वृक्षारोपण में घास खरपतवार की सफाई कर गुड़ाई का कार्य कर लें। एरी रेशम कीटपालन हेतु अरण्डी बीज की बुवाई का कार्य प्रारंभ करें टसर रेशम कीटपालन 15 जुलाई से प्रारंभ होने जा रहा है, इस हेतु साफ-सफाई का अधिक ध्यान दिया जाय तथा कीट के प्रथम मोल्ट के बाद जीवनसुधा औषधि का प्रयोग करना चाहिये।