ख्वाब सुनहरा सा

मेरे यार-मेरे दिलबर, ये बात जरा बतला।
तू कोई हकीकत है, या है ख्वाब सुनहरा सा?
क्योंकि तू मिलता है तब ही,
जब होता नींद का है, पहरा।
जो सोचू तुझे छू लू ,
तू गायब हो जाता जुगनू सा;
तू कोई हकीकत है, या है ख्वाब सुनहरा सा?
मेरे यार-मेरे दिलबर, ये बात जरा बतला।
तू पास नहीं है मेरे,
पर न दूर ही, तू लगता।
मैं जितना तुझे सोचूँ,
तू लगे है, राज कोई गहरा।
तू कोई हकीकत है, या है ख्वाब सुनहरा सा?
मेरे यार-मेरे दिलबर, मेरी उलझन तो सुलझा।
तू मेरी मंजिल है,
या बस है एक रस्ता?
मिलना भी होगा या,
बस है, चलते ही जाना?
तू कोई हकीकत है, या है ख्वाब सुनहरा सा?
मेरे यार-मेरे दिलबर, आखिर तेरे दिल में है क्या?
मैं भी तेरी चाहत हूँ, या
बस एक पड़ाव हूँ, जीवन का?
जो बीत जायेगा एक दिन,
बस एक लम्हें सा।
तू कोई हकीकत है, या है ख्वाब सुनहरा सा?
मेरे यार- मेरे दिलबर, ये बता-तू मेरा है क्या?
मेरा दोस्त है? प्रेमी है? या
बस कोई साथी है, क्षण भर का?
कोई शुभचिंतक है, या दुश्मन
या ये साथ है, जीवन भर का?
तू कोई हकीकत है, या है ख्वाब सुनहरा सा?
मेरे यार-मेरे दिलबर, ये दिल की हलचल है क्या।
अजनबी होकर भी,
क्यों लगता तू अपना सा?
जब साथ तू मेरे होता,
तो हर पल लगता है जलसा।
तू कोई हकीकत है, या है ख्वाब सुनहरा सा?
मेरे यार-मेरे दिलबर, आके दिल में बस जा।
मैं तुझमें खुद को जी लूँं,
तू भी मुझमें रम जा,
हम साथ रहे हरदम,
ये रिश्ता हो और भी गहरा।
न ये ख्वाब मेरा टूटे, न हटे नींद का ये पहरा।
मेरे यार-मेरे दिलबर; तू साथ रहे मेरे, बनके हमनवाँ मेरा।
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(Copyright @भावना मौर्य “तरंगिणी”)
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