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जाने कैसे?

मेरी खामोशियाँ को भी,
जाने कैसे सुन लेते हो तुम?
कभी-कभी महसूस करते हो सिर्फ,
तो कभी-कभी आँखो से भी कह देते हो तुम।
☆☆☆

हम तो अभिव्यक्ति में,
बहुत कच्चे हैं सनम;
पर कम नहीं तुम भी कुछ,
जाने कैसे इतना चुप रह लेते हो तुम?
☆☆☆

जानते हैं हम कि तुम्हारे दिल में भी,
मचती हलचल है;
पर फ़िर भी क्यों अपने लबों को,
सिल लेते हो तुम?
☆☆☆

जानते हैं कि मुस्कुराहट तुम्हारी,
गुमराह कर देती है लोगों को;
पर खुद के साथ अकेले में,
कभी-कभी रोते हो तुम।
☆☆☆

तुम्हारी इस अदा पर तो,
मैं सौ बार सदके जाऊँ;
कि खुद को जलाकर गमों की तपिस में भी,
सबको खुश रख लेते हो तुम।
☆☆☆

तुम्हारीं खुशियों के लिये तो हम,
खुद को भी दूर कर दे तुमसे;
अगर तुम झूठ भी कह दो कि-
किसी और के साथ ज्यादा खुश रह लेते हो तुम।
☆☆☆

जानते हैं हम कि-
मन से मेरे ही जैसे हो तुम;
शायद इसीलिए बिन कुछ कहे भी,
मेरे मन को मोह लेते हो तुम।
☆☆☆☆☆☆
—(Copyright@भावना मौर्या “तरंगिणी”)—
(Image Source: yourquote/restzone)

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