आप कैसे याद रखा जाना पसंद करेंगे?

इस संसार में आने वाला हर व्यक्ति यही चाहता है कि लोगों के मन-मस्तिष्क में उसकी अच्छी छवि अंकित रहें और मुख्यतः तब जब वो इस संसार में न रह जाये। पर हमारे सोचने भर से तो ऐसा संभव नहीं हो सकता न? इसके लिए सभी को अपने जीवित रहते ही ऐसे कार्य या प्रयत्न करने पड़ते हैं जिससे उसके मृत्योपरांत उस इंसान की सुखद यादें रहें लोगों के मन में। मेरी बात का आशय आपको नीचे लिखी एक छोटी सी लघुकथा (ये कहानी में कहीं पढ़ी थी और प्रेरणादायी लगी इसीलिए आप सभी से अपने शब्दों में साँझा कर रही हूँ) से ज्यादा बेहतर समझ आएगी। इसे पढ़ें और अपने आप से एक प्रश्न पूछें कि ‘आप कैसे याद रखा जाना पसंद करेंगे??’
लघुकथा-
काफी समय पहले की बात है। एक व्यक्ति को सुबह-सुबह नाश्ते के साथ-साथ अखबार पढ़ने की आदत थी। ऐसे ही एक दिन सब वो सुबह उठकर अखबार पढ़ रहा था तो अचानक से उसकी नज़र एक मृत्युलेख कॉलम पर पड़ी जिसमें उसका नाम छपा हुआ था। पर असल में समाचार पत्रों ने गलती से गलत व्यक्ति की मौत की सूचना दी थी। लेकिन उस व्यक्ति के लिए तो ये बात किसी सदमे से कम न थी। यहाँ तक कि उसे अपनी वास्तविक ज़िन्दगी भी आभासी लग रही थी। एक ही समय में वो अपने आपको दो-दो दुनियाँ में महसूस कर रहा था यानि एक जिसमें वो जीवित है और दूसरी वो जिसमें वो मरने के बाद पहुँचा है। फिर कुछ देर उसने अपने आपको संयत किया और अपने जीवित होने का आश्वासन होते ही सम्बंधित समाचार पत्र वालों को अपने जीवित होने कि सूचना देने का और उनकी गलती बताने का निर्णय लिए। जिसके लिए उसने फिर से अख़बार के उस लेख पर नज़र डाली क्योंकि उसे बहुत उत्सुकता हो रही थी कि लोग उसे उसकी मृत्यु के बाद कैसे याद कर रहे हैं। उसने पढ़ा, मृत्युलेख में लिखा था कि – “डायनामाइट किंग डाइस” और यह भी कि “वह मौत का व्यापारी था।”
आप जानते है कि यह आदमी डायनामाइट का आविष्कारक था जी हाँ वही डायनामाइटस जिससे किसी को भी ध्वस्त किया जा सकता है इसीलिए और जब उसने “मृत्यु का व्यापारी” शब्द पढ़ा, तो उसने खुद से एक सवाल पूछा, “क्या मुझे इस तरह याद किया जाएगा?” यह पढ़ते ही वह बहुत भावुक हो गया और उसने फैसला किया कि यह वह तरीका नहीं है और उसे इस तरह नहीं याद रखा जाना चाहिए। उसी दिन से उसने शांति की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया। उनका नाम अल्फ्रेड नोबेल था और उन्हें आज महान नोबेल पुरस्कार से याद किया जाता है।
जिस तरह अल्फ्रेड नोबेल ने समय रहते स्वयं की भावनाओं के साथ मंथन किया और अपने मूल्यों को फिर से परिभाषित करते हुए उन क्षेत्रों में कार्य करना प्रारम्भ किया जैसी छवि वो लोगों के मन में अपने लिए अंकित करना चाहते थे। ऐसे ही हमें भी अपने कर्मों के करते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि- “लोगों में मन में हम कैसे याद रखा जाना पसंद करेंगे?”
—(भावना मौर्या “तरंगिणी”)—