दिली ख्वाहिश है
मेरे मन की-
कि तेरे मुस्कुराने की
हर वजह मैं बनूँ;
जिसे मांगे दुआओं में
तू खुदा से हमेशा,
तेरे फरियादों की वो सारी,
रज़ा मैं बनूँ;
तेरी हर आरज़ू,
जिससे पूरी होती हो,
खुदा से की गयी वही,
इल्तिज़ा मैं बनूँ;
तुझे कामयाबी की राह पर,
बढ़ने के लिए,
जो चाहिए होती है,
वही हिम्मत-ए-जज्बा मैं बनूँ;
खूबसूरती से भी,
जो खूबसूरत होती है,
नयनों से छलकती हुई,
वो हया मैं बनूँ;
जो चढ़ जाये तो,
उतारने का दिल न करे,
कुछ ऐसी ही खुमारी,
और नशा मैं बनूँ;
तेरे दिल-ओ-दिमाग,
और नज़र में बसूँ मैं;
कोशिश जारी है कि-
इतनी अलहदा मैं बनूँ।
★★★★
—–(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—-
(*अलहदा= अद्वितीय, विशिष्ट)
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