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लिखती हूँ तुझे एहसासों से

लिखती हूँ तुझे एहसासों से
एहसासों को समेट कर,
तुझे लिखा है मैंने,
तूने जो कहा ही नहीं,
उसे भी सुना है मैंने,
माना कि तेरे-मेरे दरम्यां,
दूरियाँ हैं मीलों की,
पर ख्वाबों-ख्यालों में,
ही मिलते-मिलाते,
तुझे तुझसे भी ज्यादा,
जी लिया है मैंने;
न कोई फरमाइशें हैं,
न ही तुझे बदलने की कोई चाह,
तू जैसा है पसंद है मुझे,
क्योंकि तेरी कमियों के साथ,
तुझसे प्रेम किया है मैंने;
मुझे दुःख न हो इसलिए,
तू मुस्कुराता है मेरे सामने,
पर तेरी मुस्कुराहटों में छिपा दर्द
भी गहराई में महसूस किया हैं मैंने;
पता है मुश्किल तो होता है,
दूरियों में भी साथ निभाना,
पर अज़ल तक तेरे साथ,
चलने का वादा किया हैं मैंने।
★★★★★
—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
(*अज़ल= अनंतकाल)