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भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर तुर्की की आपत्ति

भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर को G20 समिट की महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में माना जा रहा है, लेकिन इस पर तुर्की ने आपत्ति दर्ज की है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने कहा है कि कोई भी कॉरिडोर उनके बिना नहीं बना सकता है। उन्होंने इसका मतलब यह है कि पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले सभी ट्रैफ़िक को तुर्की से होकर गुजरना होगा। इस प्रोजेक्ट से भारत, UAE, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, और यूरोपीय यूनियन सहित कुल 8 देशों को फायदा होगा, और इससे इजरायल और जॉर्डन को भी लाभ होगा। यह मुंबई से शुरू होने वाला नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक विकल्प होगा, जो 6,000 किलोमीटर लम्बा होगा, इसमें 3,500 किलोमीटर समुद्री मार्ग भी शामिल होगा।

कॉरिडोर के निर्माण के बाद, भारत से यूरोप तक कार्गो पहुंचाने में करीब 40% समय की बचत होगी। वर्तमान में, भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग के माध्यम से जर्मनी पहुंचाने में 36 दिन लगते हैं, लेकिन इस रूट के माध्यम से इसमें 14 दिन की बचत होगी। यूरोप तक सीधे पहुंचने के माध्यम से भारत के लिए आयात और निर्यात सस्ता और सुविधाजनक होगा।

इस प्रोजेक्ट से जुड़े होने के सात मुख्य कारण हैं:

  1. भारत और अमेरिका पहले इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन अब वे मिडिल ईस्ट में भी साझेदार बने हैं।
  2. भारत ने मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की महत्वपूर्ण बाधा को पाकिस्तान के साथ तोड़ दिया है, जिसकी कोशिश पाकिस्तान ने 1991 से की थी।
  3. भारत ने ईरान के साथ संबंध सुधारे हैं, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण ईरान से यूरेशिया तक रूस-ईरान कॉरिडोर की योजना प्रभावित हो रही है।
  4. अरब देशों ने भी भारत के साथ कनेक्टिविटी बनाने के लिए प्रयास किए हैं, और UAE और सऊदी सरकार इसमें सहायक बन रहे हैं।

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