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International Education Day: चीन में Irrfan Khan की ‘हिन्दी मीडियम’ के जरिये शिक्षा की चर्चा

बीजिंग | हर वर्ष 24 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस ( International Education Day ) मनाया जाता है। लोगों को शिक्षा के महत्व को बेहतर ढंग से समझने में मदद करने के लिये 73वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस विश्वव्यापी उत्सव की स्थापना की। शिक्षा मामले की चर्चा में हमें एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म ‘हिन्दी मीडियम ( Hindi Medium ) का उल्लेख करना होगा। इस फिल्म के निर्देशक साकेत चौधरी हैं। इरफान खान और सबा कमर इस फिल्म के मुख्य पात्र हैं। वर्ष 2017 व 2018 में यह फिल्म क्रमश: भारत और चीन में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में एक ऐसी कहानी बतायी जाती है कि एक मध्यमवर्गीय दंपति ने अपनी बच्ची को अच्छी शिक्षा देने के लिये स्कूल चुनने की बड़ी कोशिश की।

भारत और चीन दोनों बड़ी जनसंख्या वाले बड़े देश हैं, दोनों ब्रिक्स देश हैं, और दोनों के सामने बच्चों के शिक्षा मामले मौजूद हैं।

बच्चों को शुरूआती लाइन में हारने न दें, चीन और भारत ( China-India ) के माता-पिता को इस अवधारणा में एक जैसा कहा जा सकता है। वर्ष 2018 में जब चीनी लोगों ने पहली बार यह फिल्म देखी, तो बहुत से परिजनों ने इस फिल्म में दिखाये गये शिक्षा से जुड़े मामलों को गहन रूप से महसूस किया। पर चीन में कई सालों तक शिक्षा व्यवस्था में सुधार किये जाने के बाद उक्त मामले धीरे धीरे लोगों की नजर में खत्म हो गये हैं। अब हम कई पक्षों में इसकी चर्चा करेंगे।

पहला, फिल्म में इस दंपति ने अपनी बच्ची को दिल्ली में सबसे अच्छे स्कूल में प्रवेश करवाने के लिये ऊंची कीमत वाले इलाके में घर खरीदा। कई साल पहले तक चीन के बड़े शहरों में भी ऐसी समस्या थी। मां-बाप लाखों युआन खर्च कर महंगे इलाकों में घर खरीदते थे। वास्तव में यह केवल प्रसिद्ध स्कूलों में प्रवेश करने का एक टिकट होता है।



पर हाल के कई वर्षों में चीन के शिक्षा विभाग ने उक्त स्थिति को बंद करने के लिये कई नीति नियम लागू किये हैं। उनमें मल्टी-स्कूल जोनिंग नीति ने स्कूल वाले जिले में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा को प्रभावी ढंग से रोक दिया है। इस नीति के अनुसार एक बड़े क्षेत्र में कई स्कूल जिलों को चित्रित किया जाता है, और फिर लॉटरी लागू व्यवस्था लागू की जाती है। यानी आप जो घर खरीदते हैं, वह आसपास के कई स्कूल जिलों से संबंधित है। आपका बच्चा किस स्कूल में जा सकता है, यह लॉटरी द्वारा निर्धारित किया जाता है। बेशक लॉटरी खुली और पारदर्शी होनी चाहिए।

दूसरा, फिल्म में मां-बाप अपने बच्चों के स्कूल में साइन अप करने के लिये बहुत जल्द सुबह से लंबी कतार में खड़े रहते हैं। यहां तक कि कुछ पिता पहले दिन की रात स्कूल के गेट पर ही सो गए। ऐसे दृश्य चीन में भी होते थे। मां-बाप ने प्रसिद्ध स्कूलों में अपने बच्चों का बायोडाटा भेजने के लिये अपनी पूरी कोशिश की। इसे बारूद के धुएँ के बिना युद्ध कहना एक खामोशी होगी।

हालांकि, आज के चीनी माता-पिता इन परेशानियों से दूर हो गये हैं। अनिवार्य शिक्षा चरण में, प्रवेश नीति स्वैच्छिक रिपोटिर्ंग और कंप्यूटर आवंटन के संयोजन पर आधारित होती है, और घर के पास नामांकन की नीति लागू की जाती है। साथ ही स्कूल चुनने से संबंधित सभी गतिविधियों को बंद किया जा चुका है। जिससे न सिर्फ़ माता-पिता के वित्तीय बोझ को कम किया गया, बल्कि बच्चों के भारी शैक्षणिक दबाव को भी कम किया गया है।

तीसरा, फिल्म में एक प्रतिष्ठित स्कूल में प्रवेश के लिए, बच्चों को पहले से ही विभिन्न उपचारात्मक कक्षाओं में भाग लेने की आवश्यकता होती है। हालांकि उन पाठ्यक्रमों ने बच्चों का सभी समय ले लिया है, फिर भी पाठ्यक्रम सलाहकार ने कहा कि आप बहुत देर से शुरू कर रहे हैं। शिक्षा में आंतरिक प्रतिस्पर्धा का यह वातावरण केवल भारत में ही नहीं, बल्कि कई देशों में देखा जा सकता है।

बच्चों के भारी स्कूली काम के बोझ और उन्नत शिक्षण की घटना को देखते हुए, चीन ने वर्ष 2021 में दोहरी कटौती नीति को लागू किया। पहला, अनिवार्य शिक्षा चरण के दौरान अत्यधिक होमवर्क के बोझ को कम करना है। दूसरा, ऑफ-कैंपस प्रशिक्षण के बोझ को कम करना है। इसका उद्देश्य स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना, गृहकार्य व्यवस्था को अनुकूलित करना और स्कूल के बाद की गतिविधियों को रंगारंग बनाना है, जिससे छात्रों के शैक्षणिक बोझ को कम करना, छात्रों की व्यापक गुणवत्ता बढ़ाना और एक अच्छी शैक्षिक पारिस्थितिकी का निर्माण करना प्राप्त है।

चीन में उक्त नीति-नियमों के माध्यम से बच्चे अंकों के दास से स्वतंत्र शिक्षा के स्वामी में बन जाते हैं। उनके पास समाज में एकीकृत होने और अपनी ताकत और क्षमता की खोज करने के लिए अधिक समय होता है। सभी प्रकार की अनुचित प्रतिस्पर्धा के पंजे से मुक्त होकर हमारे बच्चे शिक्षा की एक ही शुरूआती लाइन में खड़े हो सकते हैं।

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