समय के साथ आत्मंथन आवश्यक है

नारद पुराण में एक व्यवसायी व्यक्ति की एक अच्छी कहानी है जिसके दो बेटे थे। इन दोनों पुत्रों को लगा कि उनके पिता ने अपना पूरा जीवन व्यवसाय में बिताया है और अब उन्हें पर्याप्त धन के साथ किसी साधु के साथ किसी तीर्थ यात्रा पर भेजा जाना चाहिए।पुत्रों ने साधु से कहा, ”जब तक पिता का हृदय परिवर्तित न हो जाए, तब तक उन्हें वापस मत लाना।”
उन्हें तीर्थयात्रा में अपना समय बिताने दो और उन्हें वहीं शरीर त्यागने दो।”इसलिए उन्हें साधु द्वारा विभिन्न पवित्र स्थानों पर ले जाया गया।साधु अंततः निराश हो गया क्योंकि इस व्यवसायी का हृदय नहीं बदल रहा था।वह वैसे ही कठोर दिल के थे और हमेशा व्यापार और पैसे के बारे में बात करते थे – जहां भी जाते थे।अंततः साधु हार मानने वाला था। उन्होंने उनके बेटों से कहा, “तुम्हारे पिता कट्टर व्यवसायी हैं, उन्हें बदलना बहुत मुश्किल है”। बेटों ने कहा नहीं! नहीं!.. आपको इन्हे नहीं छोड़ना चाहिए। आपको अभी भी प्रयास करना चाहिए।इसलिए अंतिम उपाय के रूप में, वह उसे पवित्र शहर वाराणसी ले गए।वे एक जलते हुए घाट (श्मशान घाट) से होकर गुजर रहे थे।
जैसे ही व्यापारी श्मशान में दाखिल हुआ और लकड़ी के लट्ठों पर बहुत सारे शव जलते हुए देखा तो वह रोने लगा।उसकी आँखों में आँसू भर आये और गालों पर बहने लगे। अंत में बूढ़े व्यक्ति की वैराग्यता देखकर साधु प्रसन्न हुए।व ह बूढ़े आदमी की ओर मुड़ा और उसके कंधों पर हाथ रखकर बोला, “अब आप क्या महसूस कर रहे हैं? अब आप जीवन के बारे में कैसा महसूस करते हैं?”व्यवसायी ने कहा, “मुझे सचमुच बहुत बुरा लग रहा है।मु झे बहुत बुरा लग रहा है, मैंने अपना जीवन बर्बाद कर दिया है। साधु ने आगे पूछा, “वास्तव में?” तुम्हें बुरा क्यों लग रहा है? मुझे बताओ।
व्यापारी ने उत्तर दिया, “मैं जीवन भर कपड़ा व्यापारी था।अगर मुझे पता होता कि लकड़ी की इतनी मांग है तो मैं लकड़ी का कारोबार करता।मैंने अपना पूरा जीवन कैसे बर्बाद कर दिया। मुझे अब इसके बारे में बुरा लग रहा है”। फिर साधु ने इस आदमी का साथ छोड़ दिया।
इससे हम समझते हैं कि केवल समय बीतने से इच्छाएँ अपने आप ख़त्म नहीं हो जाएँगी। व्यक्ति को ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए।यदि हम अभी कुछ समय तक प्रयास नहीं करेंगे तो हमारी इच्छाओं पर नियंत्रण पाना असंभव हो जाएगा।