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जादू है या तिलिस्म

जादू है या तिलिस्म,
पर कुछ तो है,
तेरी मौजूदगी का मुझ पर,
असर कुछ यूँ है;

खामोशी में भी अब,
हम मुस्कुराने लगे हैं,
और ख़यालों में मेरे,
अब सिर्फ तू है;

मंजिल से ज्यादा अब,
सफर भाने लगा है,
ऐसे न हुआ था कभी,
पर जाने अब क्यूँ है?

जैसे पानी में रंग घुलकर,
अपनी निशानी छोड़ देता है,
मेरी ज़िंदगी में भी,
शामिल तू कुछ यूँ है;

तेरी मोहब्बत में,
कशिश ही कुछ अजीब सी है,
कि तुझे पाने की नहीं,
तुझ संग जीने की जुस्तजू है;

तुझसे मिले तो वजूद,
अब पूरा सा लगे है
जैसे जिस्म हूँ मैं,
तो तू इसकी रूह है;

मेरे मन में बसी,
इक तेरी ही सूरत है,
और मेरी साँसों में घुली,
बस तेरी ही खुशबू है;

तेरे मुस्कुराने की हर,
वज़ह में शामिल रहूँ मैं,
यही इल्तिज़ा है खुदा से,
और यही मेरी आरजू है;

जादू या तिलिस्म,
हाँ कुछ तो है,
और इस रूहानियत की,
वजह सिर्फ तू है।
★★★★★
—–(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—–
(Cover image: pixbay.com)

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