ये नया प्रारम्भ है

एक बीज बोया गया था जो,
है वृक्ष अब वो बन गया;
सोलह वर्षों का है सफर ये,
पर एक लम्हें सा निकल गया;
बढ़ती रहीं शाखाएं इसकी,
और नव पुष्प-पर्ण खिलते रहे;
हम बढ़ते रहे अपनी ही धुन में,
और हमसफर मिलते रहें;
आंधियाँ आयी कितनी ही,
और तूफां भी टकरा गया;
हौंसला था मजबूत अपना,
वो भी देख हमें घबरा गया;
बातें हुई, यादें बनी, बिताये हैं कई क्षण,
हमने मिलकर उत्सव-जश्न से;
एहसासों का यहाँ मेला है लगता,
मुलाकातें होती हैं सीधे अंतर्मन से;
पूरे वर्ष इस एक दिन का,
अधीर हो प्रतीक्षा करते हैं सब;
कोई ढूँढता है यहाँ अक्ष अपना,
किसी को दिख जाता है रब;
अनुपम है ये संसार अपना,
अप्रतिम है रिश्ते यहाँ;
‘मेधज’ नाम ही अद्वितीय है,
‘समीर’ सा अद्भुत व्यक्तित्व, और है कहाँ?
इरादें उनके फौलाद से हैं,
मुख पर तेज़ है जैसे सूर्य सा;
जो एक बार उनसे है मिलता,
उसे दूर जाकर लगे अपूर्ण सा;
ये तो सौभाग्य हमारा है,
कि इसके अंश हैं हम सब भी;
नमन है ‘मेधज’ संस्था को, और-
ऐसे व्यक्तित्व को नतमस्तक हैं सभी।
“ये अंत नहीं, आरम्भ है; फिर नया प्रारम्भ है।”
मेधज परिवार के समस्त सदस्यों को 16 वर्षों के सफर को सफलतापूर्वक पूर्ण करने पर हार्दिक बधाई और 17वें वर्ष में नयी ऊर्जा के साथ पदार्पण करने के लिए ढेर सारी शुभकामनायें।
—–(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—–
{पर्ण = पत्तियाँ; अप्रतिम =बेजोड़}
(Cover Image: pixbay.com)
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
भाग-4: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-4/
भाग-5: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-5/
भाग-6: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-6/