क्राइम

संवेदना की शोक सभा…

सुना
है! संवेदना की शोकसभा है ………नहीं! नहीं! संवेदना आपकी पड़ोसन नहीं…….
कोई टीवी एंकर या राजनैतिक हस्ती भी नहीं
, जिनके मरने पर हर ओर हाहाकार और रोने धोने का माहौल हो …… ये
बेचारी तो वही बरसों पहले कमज़ोर हुई
, मरणासन्न स्थिति में जी रही भावना है जो  संक्रमण के दौर में लोगों के दिलों में ही दम
तोड़ चुकी है  ! दअरसल सरकार के बार बार
कहने पर लोगों ने आपसी दूरी इतनी बढ़ा ली है कि हमें किसी के सुख दुःख से भी कोई
ख़ास संवेदना नहीं रह गई है
l

कोरोना
काल में जिस तरह लोग …. दो गज़ की दूरी …. मास्क है ज़रूरी …. का पालन पूरी
निष्ठा से करते नज़र आ रहे हैं ….. कभी मस्क होता नहीं….होता भी है तो कभी नाक
के नीचे  या कभी  गले में शोभायमान होता है ….शायद संवेदना को
मारकर ही  बैठे हैं
l किसी की मदद करने की तो बात ही क्या है
जनाब !

ये
वो प्राणी हैं जो स्वयं को अत्यधिक पढ़ा लिखा और उच्च श्रेणी का मानते हैं और हर
स्थान पर हाजिरी भर के लिए पहुंचना अपना परम कर्तव्य समझते हैं …. फर्क तो
इन्हें किसी की मौत से भी नहीं पड़ता ! हुआ दरअसल यों कि कुछ समय पहले हमारे पड़ोस
में एक बुज़ुर्ग की मृत्यु हो गई साहब! नहीं! नहीं! कोरोना से नहीं …. बीमारी के
चलते … लेकिन फिर भी माहौल देखते हुए शोकाकुल परिवार ने समझदारी दिखाई और किसी
को भी खतरों का खिलाड़ी बनने को मजबूर किये 
बिना अपनी संवेदनाये अभिव्यक्त करने हेतु ऑनलाइन माध्यम से शोकसभा का आयोजन
किया
l

अब
वे बेचारे सोच रहे थे कि घर के बुज़ुर्ग को लोगों की प्रार्थनाएं और संवेदनाये
मिलेंगी और दूर से ही सही …….लोग भाव विभोर हो उनकी इस शोक सभा में अपनी
श्रद्धांजलि देंगे ! मैं स्वयं इस ऑनलाइन शोकसभा में ठीक समय पर जुड़ गई थी
l मैंने अपना शोक सन्देश श्रद्धांजलि
अर्पित करते हुए चैट बॉक्स में लिख भेजा
l मैंने अपना कैमरा नहीं खोला हुआ था l

अचानक
जिज्ञासा हुई यह देखने की कि कौन कौन इस शोक सभा में शामिल हैं
l तभी दृष्टि एक महान विभूति को देखकर
मोहपाश में अटक कर रह गई
l बहुत चाहा किन्तु मैं वहां से ना नज़र हटा सकी और ना दिमाग …….
केवल कान थे जो शोकसभा में सही मायने में अपनी हाजिरी लगा रहे थे ….. रही बात
आँख और दिमाग की … तो पूछिए मत साहब ….हैरान थे …दरअसल एक फुटबॉल जैसी पतली
कामिनी सी महिला शोक सभा में अपना कैमरा खोलकर लगातार अंग्रेजी का अखबार पढ़ रहीं
थी! मजाल है कि एक शब्द भी खबर का छूट गया 
हो …..अक्षर अक्षर चाट डाला साहब !

जानती
हूँ आपके खुराफ़ाती दिमाग में यही चल रहा है ना कि यदि सारा समय अखबार सामने था तो
मैंने उनकी कमसिन काया का पता कैसे लगाया होगा ! जी हाँ ! आखिर वो समय भी आया जब
उनका अखबार अध्ययन समाप्त हुआ …. और भोजन अवकाश आरम्भ हुआ …. किन्तु मजाल है
…. कि कैमरा एक क्षण के लिए भी बंद हुआ हो …. उपर से यदि शोकाकुल परिवार के
किसी सदस्य ने उनकी भाव भंगिमाएं देखी 
होतीं तो शायद वहीं दम  तोड़ दिया
होता
l

तो
शुरू हुआ सभ्य  महिला का चारा चरना …
क्षमा चाहती हूँ …. ज़बान छोडिये उंगलियाँ भी ना चाहते हुए फिसल गई … और गलती
से सभ्य महिला का चारित्रिक वर्णन कर बैठी
l खैर नाश्ता करना शुरू किया और कम से कम  पंद्रह मिनट तक पूरी तल्लीनता के साथ भोजन
ग्रहण किया
l

उनके
खाने के तरीके से मैं पूरे विशवास से कह सकती हूँ कि अब तक वे ये भूल चुकी थीं कि
कैमरा खुला है ….. जी हाँ! क्योंकि यदि कैमरे का इन्हें ज़रा भी भान होता तो किसी
अभिनेत्री के समान सभ्यता का दिखावा करते हुए खाती जैसा कि अक्सर शादी पार्टियों
में हम करते  भी हैं … लेकिन ये क्या !
ये तो चारा घोटाले की सच्ची पीडिता मालूम हो रही थीं
l तभी आभास हुआ दरअसल ये शोकसभा किसी
बुज़ुर्ग की नहीं अपितु हमारी मरणासन्न दीन हीन भावना
संवेदनाकी थी! ॐ शांति!

डॉ०
पूजा कौशिक

(शिक्षाविद, समाजसेविका एवं लेखिका) 

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