चल इश्क़ मुक़म्मल करते हैं
चल इश्क़ मुक़म्मल करते हैं,
जो ख़्वाहिश है तेरे दिल की,
और जो चाहत है मेरे मन की,
आज, पूरी वो हसरत करते हैं;
चल इश्क़ मुक़म्मल करते हैं…
चल एक-दूजे के सदके ही,
अब हम जीते हैं और मरते हैं,
मतलबपरस्त इस दुनिया में,
अपने प्रेम को निश्चल करते हैं;
चल इश्क़ मुक़म्मल करते हैं…
आहभरे इस जीवन को,
अपनी चाह से रौशन करते हैं,
न ही तन से, न ही धन से,
अपने प्रेम के इस संगम को,
हम मन से निर्मल करते हैं;
चल इश्क़ मुक़म्मल करते हैं…
कुछ तेरी पहेलियाँ, कुछ प्रश्न मेरे,
चल दोनों मिल कर, हल करते हैं,
शांत पड़े इस जीवन को थोड़ा सा चंचल करते हैं,
आओ मिलकर दोनों फिर से कुछ,
प्यारी सी हलचल करते हैं;
चल इश्क़ मुक़म्मल करते हैं…
आने वाले हर पल को- हर कल को,
एक-दूजे के साथ से उज्ज्वल करते हैं,
चल, इश्क मुक़म्मल करते हैं,
हाँ, इश्क़ मुक़म्मल करते हैं..!!
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—(Copyright@भावना मौर्या “तरंगिणी”)—