तन्हाई मुझ से कुछ बात तो कर
तन्हाई मुझ से,
कुछ बात तो कर,
तू ज़ाहिर अपने,
जज़्बात तो कर;
गुमसुम है क्यों,
क्या खोया है तूने?
मेरे प्रश्नों का तू,
कुछ प्रतिवाद तो कर;
तन्हाई मुझ से कुछ बात तो कर।
किसी के जाने पर,
ज्यादा दुखी क्यों होना,
जो है उससे अपने,
जीवन को आबाद तो कर;
जिंदगी के रंगमच में,
हर कोई ही किरदार है,
पर कभी इस किरदार से,
मुझे भी दो-चार तो कर;
तन्हाई मुझ से कुछ बात तो कर।
लबों की सी लेने से,
दुःख कम नहीं हो जाता है,
इसलिए मन के भावों को,
शब्दों में आज़ाद तो कर;
मुश्क़िलों का क्या है,
ये तो जीवन का अंग हैं,
तो इसे खेल समझकर,
प्रतियोगिता को पार तो कर;
तन्हाई मुझ से कुछ बात तो कर।
सुना है कि तन्हाई को भी
लफ्जों की चाहत होती है,
तो तू अपना समझ कर,
मुझसे कुछ संवाद तो कर;
अकेलेपन और दुःख में तो,
सब ही अश्रुओं का सहारा लेते हैं,
तू खिलखिलाकर-मुस्कुराकर,
कभी कुछ अपवाद तो कर;
तन्हाई मुझ से कुछ बात तो कर।
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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
Very well written
Thank you so much Ishan Ji :-))