आज से शुरू हुई भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, जानिये इससे जुडी कुछ ख़ास बाते जो शायद आप आज भी नहीं जानते ?

जगन्नाथ यात्रा को पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र और श्रीक्षेत्र जैसे नामों से जाना जाता है। ये यात्रा लोगों की आस्था का विशेष केंद्र हैं , भगवान श्री जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। हर साल श्री जगन्नाथ रथ यात्रा बड़े हर्ष और उल्लास के साथ की जाती है। रथ यात्रा शुक्ल पक्ष को शुरू की जाती है।
हर साल ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ का आयोजन बड़ी ही धूमधाम से किया जाता है, जिसमें देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग हिस्सा लेने आते हैं। इस समय भगवान जगन्नाथ की 146वीं रथ यात्रा निकाली जा रही है। ओडिशा के पुरी शहर में लाखों की भीड़ पहुंच गई है।
क्यों अधूरी रह गई थी भगवान की मूर्तियां?
प्राचीन कहानियो और कथाओं के अनुसार एक बार राजा इंद्रदयुम्न ने एक बूढ़े बढ़ई को मूर्ति निर्माण का कार्य सौंपा था। वो बूढ़े बढ़ई कोई और नहीं बल्कि भगवान विश्वकर्मा थे, मूर्ति निर्माण के दोरान भगवान विश्वकर्मा जी ने राजा के सामने एक शर्त रखी जिस पर उन्होंने कहा कि वह एक बंद कमरे में मूर्तियों का निर्माण करेंगे। लेकिन जब तक यह मूर्तियां नहीं बन जाती , तब तक कोई भी इस कमरे के अंदर प्रवेश नहीं करेगा, चाहे वो कोई भी हो चाहे वो राजा ही क्यों न हो, अगर इसके बाद भी कोई इस कमरे में आता है तो वह मूर्ति का निर्माण कार्य उतने में ही छोड़ देंगे। बूढ़े बढ़ई (भगवान विश्वकर्मा जी) की शर्त राजा ने स्वीकार कर ली जिसके बाद भगवान विश्वकर्मा मूर्तियों के निर्माण करने लगे, एक दिन राजा निर्माण कार्य वाले कमरे के दरवाजे के बाहर खड़े हो गए और अंदर की आवाज सुनने की कोशिस करने लगे, राजा यह सुनिश्चित करना चाहता था कि अंदर मूर्तियों का निर्माण कार्य चल भी रहा है या नहीं।
जब राजा को अंदर से कोई भी आवाज नहीं आयी तो राजा को आभास हुआ कि शायद बढ़ई अपना कार्य छोड़कर कहीं चला गया है। जिसके चलते राजा ने कमरे का दरवाजा खोल दिया, फिर क्या था शर्त के अनुसार भगवान विश्वकर्मा उसी समय स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान कर गए। इस कारण आज भी भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गई हैं , एक मान्यता ये भी हैं कि जब भगवान कृष्ण ने अपनी देह त्याग दी थी तो वो वैकुण्ठ धाम चले गए थे, उनके शरीर का अंतिम संस्कार पांडवों द्वारा पुरी में किया गया, जिसमे भगवान श्री कृष्ण का पूरा शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया , लेकिन उनका हृदय जीवित रहा। बताया जाता हैं कि तब से लेकर आज तक उनके हृदय को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में सुरक्षित रखा गया है और ये भी माना जाता है कि आज भी भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में भगवान श्री कृष्ण में हृदय धड़कता है।
यह वैष्णव मंदिर भगवान हरि के पूर्ण अवतार भगवान कृष्ण को समर्पित है। साल भर मंदिर कोर में इनकी पूजा की जाती है, लेकिन आषाढ़ के महीने में तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा पर गुंडी को मंदिर में लाया जाता है।
यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं
भक्त जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के सजाए गए रथ को विशाल रस्सियों से खींचते हैं और जगन्नाथ की मौसी के घर गुंडी के मंदिर में ले जाते हैं। यह मंदिर जगन्नाथ मंदिर से तीन किलोमीटर दूर है।
भक्त इन मजबूत रथों को खींचने के लिए खुद को धन्य मानते हैं। इन रथों को पांच तत्वों से सजाया जाता है। इसमें लकड़ी, धातु, पेंट, कपड़ा और सजावट शामिल है। रथ बनाने के लिए औषधीय नीम के पेड़ की लकड़ी का उपयोग किया जाता है।
इस रथ यात्रा में बलराम का हरे रंग का रथ जिसे ‘तलध्वज’ कहा जाता है, सबसे आगे होता है। बीच में सुभद्रा का रथ होता है जिसे ‘दार्पदलन’ कहा जाता है। और श्री जगन्नाथ का ‘गरुड़ध्वज’ सबसे अंत में होता है। जगन्नाथ का रथ लाल पीले रंग का होता है।
जगन्नाथ का 16 पहियों वाला रथ 45.6 फीट लंबा है जबकि बलराम का रथ 45 फीट लंबा और सुभद्रा का रथ 44.6 फीट लंबा है। इस रथ को बनाने में किसी नुकीली चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ( जगन्नाथ रथ यात्रा )
जगन्नाथ रथ यात्रा 2023: समय और पूरा कार्यक्रम
20 जून 2023 (मंगलवार): जगन्नाथ रथ यात्रा (गुंडी के बुआ के घर जाने की परंपरा) शुरू
24 जून, 2023 (शनिवार): हेरा पंचमी (पहले पांच दिन भगवान गुंडी मंदिर में रहते हैं)
27 जून 2023 (मंगलवार): संध्या दर्शन (इस दिन जगन्नाथ के दर्शन करने से 10 वर्षों तक श्री हरि की पूजा करने का फल मिलता है)
28 जून, 2023 (बुधवार): बहुदा यात्रा (भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की गृह यात्रा)
29 जून, 2023 (गुरुवार) : सुनबेसा (भगवान जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद अपने भाई-बहनों के साथ शाही रूप धारण करते हैं)
30 जून 2023 (शुक्रवार) : आधार पन्हम (आषाढ़ शुक्ल द्वादशी के दिन आकाशीय रथों को एक विशेष पेय चढ़ाया जाता है। इसे दूध, पनीर, चीनी और सूखे मेवों से बना पन्हम कहा जाता है)
1 जुलाई 2023 (शनिवार) : नीलाद्रि बीजे (जगन्नाथ रथ यात्रा का सबसे दिलचस्प अनुष्ठान नीलाद्रि बीजे है
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