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भगवान राम का गोपियों से वादा

अपनी प्रजा को साबित करने के लिए की वो एक आदर्श राजा है भगवान राम ने लक्षमण जी से कहा की वे सीता को जंगल में छोड़ कर आएं क्योंकि उनकी प्रजा का सोचना था एक आदर्श राजा वही है जिसका व्यक्तिगत संबंध भी उनके राज्य और उनकी प्रजा से अधिक महत्वपूर्ण न हो ।

एक राजा के रूप में उन्हें कई यज्ञ करने पड़ते थे जिसके लिए पत्नी की आवश्यक होती थी। वसिष्ठ मुनि, जो की उनके आध्यात्मिक गुरु थे उन्होंने राम जी से कहा कि पत्नी के बिना वह कोई यज्ञ नहीं कर सकते, इसलिए या तो उन्हें सीता को वापस बुला लेना चाहिए या उन्हें दूसरी पत्नी से विवाह कर लेना चाहिए। जिस पर भगवान राम ने साफ इनकार कर दिया। भगवान राम ने इसके अन्य विकल्प के बारे वसिष्ठ मुनि से पूछा तब मुनि ने उन्हें बताया की यदि उन्हें सीता जी की सोने में बनी हुई कोई मूर्ति प्राप्त हो जाये तो उस मूर्ति को पूजा स्थल पर बैठा कर उनकी अर्धांगिनी माना जा सकता है और इस तरह यज्ञ संपन्न हुआ। इस तरह उन्होंने कई यज्ञ किये और हर बार उन्होंने सोने से सीता की एक मूर्ति बनाई।

जब भगवान राम ने सोचा कि अब समय आ गया है कि जब उन्हें इस धरती से अपनी लीला समाप्त करनी चाहिए और अपने निवास  धाम वापस चले जाना चाहिए, उस समय सीता देवी की ये सभी स्वर्ण मूर्तियाँ भगवान राम के पास आईं और उनसे कहा,आप हमें छोड़कर अकेले कैसे जा सकते हैं? अब हम सब आपकी पत्निया हैं और अगर आप चले जायेंगे तो हमारा ख्याल कौन रखेगा? और एक आदर्श पति के रूप में आपको हमें अपने साथ ले जाना होगा।”

इस पर भगवान राम को बहुत अजीब लगा, उन्होंने कहा “मैं आप सबको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता हूँ?”मैं पहले से सीता से विवाहित हूँ, और इस जीवन में मैं एक से अधिक पत्नी नहीं रख सकता, लेकिन मैं आप सभी से वादा करता हूं, कि अपने अगले अवतार में, जब मैं भगवान कृष्ण के रूप में आऊंगा, तब मैं आप सभी को अपनी पत्नी के रूप में सहर्ष स्वीकार करूंगा। सभी मेरी अंतरंग गोपियाँ बन जाएँगी।इस प्रकार, भगवान ने उन स्वर्ण मूर्तियों को शांत किया, और वह अपने निवास के लिए चले गए, और जब वह फिर से भगवान कृष्ण के रूप में आए, तो उन्होंने उनकी इच्छा पूरी की।

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