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शब्द में प्रेम…प्रेम में शब्द…!!

(1)
हवा सी बहती यादें हैं ज़हन में,
और बूंदों से भिगोते एहसास हैं,
मन में हलचल उठती है अक्सर,
कि क्या हम भी खास हैं उनके लिए,
जो हमारे लिए बेहद खास हैं?
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(2)
तेरी नज़दीकियाँ हमें, कहीं गुनाहगार न बना दें,
जानम दूरियों को भी, कुछ तवज़्ज़ो दिया कीजिये,
आप लब खोलेंगे तो हम होश ही खो देंगे अपने,
इसलिये आप नज़रों से ही गुफ़्तगू किया कीजिये।
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(3)
अनजाने से सफर पर, ले हाथों में तेरा हाथ,
कुछ मन में मची हलचलें, कुछ अनकहे जज़्बात,
बढ़ते रहे हम आगे और जुड़ते गए एहसास,
जीवन में और क्या चाहिये मुझे, बस ‘तुम्हारा साथ’।
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(4)
उन घड़ियों में कुछ भी बोलने की,
फिर तमन्ना ही कहाँ रह जाती है,
जब मेरी मौज़ूदगी के एहसास से,
तेरी आँखे भी अधरों संग मुस्कुराती हैं।
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(5)
क्या लिखूँ मैं तुम्हारे लिए,
अब शब्दों से रिक्त हूँ मैं,
सोच में है बस तू ही तू,
तेरे प्रेम से ही सिक्त हूँ मैं,
सब बेदखल हैं मेरी दुनिया से,
बस तेरे लिए ही अतिरिक्त हूँ मैं।
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(6)
तेरे आँखों की भाषा, समझ आती है मुझे,
इनमें छिपे प्रेम की परिभाषा, समझ आती है मुझे,
जो कह कर ज़ाहिर हुआ, उसमें वो बात ही कहाँ हैं,
तेरे अनकहे लफ़्ज़ों की भाषा, समझ आती है मुझे।
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—–(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—-

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