मनोरंजनकवितायें और कहानियाँ

इश्क इज़हार चाहता है

जब से तेरी खामोशियों को,
गौर से पढ़ने लगे हैं हम;
तब से तुमसे और भी ज्यादा,
मोहब्बत करने लगे हैं हम;

रोज ख़्वाबों में देखते हैं,
तुझ अपना बनाते हुये;
ख्वाब टूट न जाये, इसी डर से-
नींद से, जगने से डरने लगे हैं हम;

पता ही न चला कि कब तुम-
दिल में इतने गहरे उतर गए?
कि भूलकर सारी बंदिशे ज़माने की,
तुझ पर दिल-ओ-जान से मरने लगे हैं हम;

पहले बिखरे-बिखरे से रहते थे,
न ही होश था खुद का,
न खबर थी दुनियादारी की;
पर अब तुझे पाने की चाहत में,
अपने दायरों में कभी बढ़ने,
तो कभी सिमटने लगे हैं हम;

अब अकेले होने पर भी,
अकेले कहाँ होते हैं हम?
हर पल तेरी यादों के,
सायों संग चलने लगे हैं हम;

वादा किया था खुद से,
कि खामोश इश्क करेंगे तुझसे,
पर तेरी नज़रों की इनायत,
ज़रा सी किसी और पर क्या हुई?
तेरे आस-पास रहने वाले हर शख्स के,
वजूद से जलने लगे हैं हम;

ज़ुबाँ भी अब खामोश रहने से इंकार करती है,
दिल भी अब संयम से बाहर है मेरे,
इसीलिए भुला कर सारे पैमाने ज़माने के,
तुझसे इज़हार-ए-इश्क करने लगे हैं हम।

—(Copyright@भावना मौर्य ‘तरंगिणी’)—

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