शायद कुछ ऐसा है

शायद कुछ ऐसा है

शायद कुछ ऐसा है

शायद अच्छी लगती हैं उन्हें नासमझियाँ मेरी;
बोलते हैं कम, पर महसूस होता हैं मुझे;
शायद अच्छी लगती हैं उन्हें,
अल्हड़पन में की गयी मस्तियाँ मेरी।

कभी-कभी तो ढेर सारी बातें भी,
कम ही लगती हैं समझाने के लिए;
पर कभी-कभी कुछ न भी बोलो,
तो भी वो सुन लेते हैं खामोशियाँ मेरी।

कहने को तो धीर-गम्भीर-
व्यक्तित्व है उनका;
पर शायद खुश होते हैं वो
देखकर अठखेलियाँ मेरी।

वैसे तो मीलों की दूरियों में भी,
एहसासों का रिश्ता हैं हमारा,
पर शायद कभी-कभी वो,
पाना चाहते हैं नज़दीकियाँ मेरी।

किस्से सुनाने का भी,
हुनर खूब आता हैं उन्हें;
पर कभी-कभी सुनना-
चाहते हैं वो कहानियाँ मेरी।

जानती हूँ कि उसूलों के पाबंद हैं वो,
और गलतियों से सख्त नफरत हैं उन्हें;
फिर भी नज़रअंदाज कर देते हैं;
कभी-कभी नादानियाँ मेरी।

अपनी धुन के बहुत पक्के हैं वो,
ये अच्छी तरह पता है मुझे;
पर जानती हूँ कि मांयने रखती हैं,
उनके लिए मनमर्जियाँ मेरी।

जानती हूँ कि समझदारी,
कूट-कूट कर भरी हैं उनमें;
पर फिर भी नदान बन जाते हैं,
बूझने के लिए बिना तर्क वाली पहेलियाँ मेरी।

उनका साथ और विश्वास ही,
बहुत बड़ा एहसास है मेरे लिए;
उनकी एक हँसी से ही दूर हो-
जाती हैं सारी परेशानियाँ मेरी।

उनकी खुशियाँ कितनी मायने रखती हैं मेरे लिए,
इसका अंदाज़ा उन्हें भी नहीं शायद;
कितने ही खुशियों के दरबार में लगी हैं,
उनको खुश रखने की अर्जियाँ मेरी।

अभी उन्हे कद्र नहीं है हमारी, या शायद-
वो खुलकर अपनापन जताते नहीं हैं;
पर जब हम न रहेंगे इस जहान में,
तो शायद याद करेंगे वो निशानियाँ मेरी।

★★★★★

—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—

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