चंद्रमा की बढ़ती दूरी लंबे कर रही है पृथ्वी के दिनों को

आपने कभी सोचा है कि पृथ्वी के दिनों की लंबाई क्यों बढ़ रही है? इसका रहस्य चंद्रमा के साथ जुड़ा हुआ है, और यह रोचक है कि कैसे हमारे ग्रह के दिन और रात की अवधि बदल रही है। चलिए, हम इस विषय पर एक नजर डालते हैं और जानते हैं कि यह कैसे हो रहा है।
पृथ्वी का धूर्णन और चंद्रमा
पृथ्वी पर दिन और रात के होने का कारण पृथ्वी का अपनी ही धुरी पर घूर्णन है। इसकी गति के आधार पर ही हमारे ग्रह के दिन और रात की अवधि तय होती है। एक समय था जब पृथ्वी के दिनों की लंबाई छोटी हुआ करती थी। विशेषज्ञों का कहना है कि 1.4 अरब साल पहले पृथ्वी का एक दिन केवल 18 घंटे का हुआ करता था। पृथ्वी के घूर्णन के पर चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी के असर के कारण इस अवधि का निर्धारण होता था। हालिया अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हमारे ग्रह के दिनों की लंबाई धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है और इसकी वजह चंद्रमा की पृथ्वी से धीरे-धीरे बढ़ती दूरी है।
चंद्रमा का प्रभाव
इस पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉनसिन-मैडिसन के जियोसाइंस के प्रोफेसर और इस अध्ययन के सहलेखक स्टीफन मेयर्स बताते हैं कि जैसे जैसे चंद्रमा पृथ्वी से दूर जाता है, पृथ्वी एक स्केटर की तरह घूमती है जिसकी भुजाएं फैल जाती हैं। इसे समझाने के लिए शोधकर्ताओं ने एक सांख्यिकीय तकनीक विकसित की जिसमें खगोलीय सिद्धांतों और भूगर्भीय पड़तालों को जोड़ा गया था, जिसे एस्ट्रोक्रोनोलॉजी कहती है।
एस्ट्रोक्रोनोलॉजी का उपयोग
इस पद्धति से वैज्ञानिकों को पृथ्वी की पुरातन भूगर्भीय जानकारी, सौरमंडल का विकास और जलवायु में आए असामान्य बदलावों, जो चट्टानों के निर्माण के दौरान उसमें दर्ज हुए, उनका पता चला। मेयर्स ने बताया कि उनका एक उद्देश्य एस्ट्रोक्रोनोलॉजी का उपयोग कर पुरातन समय की भूगर्भीय जानकारी पाना था और वे अरबों साल पुरानी चट्टानों का आज की भूगर्भीय प्रक्रियाओं की तुलना में अध्ययन करना चाहते थे।
बहुत सारे कारक
खगोलीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी पर धुरी घूर्णन, डगमगाहट, सौरकक्षा के साथ हमारी जलवायु में आने वाले बदलाव लाखों सालों की बदलाव प्रक्रिया के तहत चट्टानों में दर्ज होते रहे जिन्हें मिलनकोविच चक्र कहते हैं। इनकी पहचान एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। 2022 में मेयर्स और उनके साथियों सौरमंडल की उथल पुथल के संकेतों को 9 करोड़ साल पुरानी चट्टानों में जमा परतों में खोज निकाला।
दूर होने की दर का सवाल
अभी चंद्रमा पृथ्वी से हर साल 3.82 सेमी की दर से दूर जा रहा है। लेकिन इसके आधार पर 1.5 अरब साल पहले की बात करें तो उस लिहाज से उस समय चंद्रमा पृथ्वी के इतने पास होगा कि उसके टुकड़े ही हो गए होंगे। इसके अलावा इससे तो चंद्रमा की वर्तमान आयु 4.5 अरब साल की नहीं लगती है। इस पहेली को सुलझाने के लिए मेयर्स ने पृथ्वी के पास के ग्रहों की अरबों साल पहले की गतिविधि और उनके प्रभावों का मापन किया।
सांख्यिकीय पद्धति का विकास
मेयर्स ने इस समस्या को 2016 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लैमोन्ट डोहर्टी अर्थ ऑबजर्वेटरी में प्रस्तुत किया। यहां कोलंबिया के एक शोधकर्ता अल्बर्टो मिलनवर्नो का उन्हें साथ मिला और दोनों ने मिलकर एक सांख्यिकीय पद्धति का विकास किया जिसमें खगोलीय सिद्धांतों और भूगर्भीय पड़तालों को जोड़ा गया था, जिसे एस्ट्रोक्रोनोलॉजी कहती है।
टाइमऑप्ट एमसीएसी
नाम की इस पद्धति का परीक्षण करते हुए उन्होंने उत्तरी चीन में 1.4 अरब साल पुरानी चट्टानों की परत और दक्षिणई अटलांटिक की वैल्विस रिज में 5.5 करोड़ साल पुराने हिस्सों का अध्ययन किया। इस तकनीक से उन्होंने हाल के और पुराने समय में पृथ्वी के घूर्णन की दिशा और कक्षा के आकार की जानकारी मिली जिससे वे दिन की लंबाई और पृथ्वी और चंद्रमा की दूरी का पता लगा सके। भविष्य में शोधकर्ता अपने कार्य को विस्तार देते हुए और ज्यादा भूगर्भीय कालों की जानकारी हासिल करना चाहते हैं।
और अध्ययन
दो अन्य अध्ययनों में भी चट्टानों के रिकॉर्ड और मिलनकोविच चक्र के अध्ययन के जरिए पृथ्वी के इतिहास और बर्ताव का अध्ययन किया गया है। लैमोन्ट- डोहर्टी पर एक टीम ने एरिजोना में चट्टानों के निर्माण के दौरान हुए पृथ्वी की कक्षा में आए उतार चढ़ाव की पुष्टि की। दूसरी टीम में मोयर्स और अन्य शोधकर्ताओं ने महासागरों के जीवों के विकास और उनके विलुप्त होने के चक्र की 45 करोड़ साल पुरानी जानकारी हासिल की। मेयर्स का कहना है कि भूगर्भीय रिकॉर्ड शुरुआती सौरमंडल की वेधशाला की तरह हैं और वे इनका अवलोकन कर पृथ्वी के दिन की लंबाई जैसी जानकारी हासिल कर रहे हैं।
समापन
इस अद्वितीय अध्ययन से हमें पृथ्वी के दिनों की बढ़ती लंबाई के पीछे के कई रहस्यों का पर्दाफाश हुआ है। चंद्रमा की बढ़ती दूरी का प्रभाव पृथ्वी के धूर्णन पर कैसे पड़ता है, यह एक रोचक और अद्वितीय कहानी है। हमारे ग्रह के दिनों की लंबाई के बढ़ने के पीछे यह खोज निष्कर्षित रूप से हमारे सौरमंडल में हो रहे परिवर्तनों का भी पता लगाने में मदद कर सकता है।