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मैसूर पैलेस का समृद्ध इतिहास

मैसूर पैलेस का अपना एक समृद्ध इतिहास है। जिसका निर्माण वाडियार राजवंश ने 14वीं शताब्दी में किया था। भव्‍य महलों में की गई नक्काशियाँ आगंतुकों को आकर्षित करती है। मैसूर पैलेस भारत के सबसे ऐतिहासिक और मशहूर स्थलों में से एक है। यह कर्नाटक की शान है। यह मैसूर पैलेस चामराजपुरा के अग्रहारा में सयाजी राव रोड के साथ स्थित है।

1793 में हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान द्वारा वाडियार राजा को हटा के मैसूर की सत्ता संभाल ली गई थी। जिसके शासन के दौरान इस महल को मुस्लिम वास्तुकला शैली में ढाल दिया गया था। इस महल में कई मंडप है। जिसमे से एक गुड़िया का गोम्बे थॉटी मंडप है। जिसमे 84 किलोग्राम सोने से सजाए गए हाथी के लिए लकड़ी की पालकी सहित और यूरोपीय मूर्तिकला और औपचारिक भारतीय वस्तुओं का एक अच्छा संग्रह भी है।

1799 में जब टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई थी। तो वाडियार राजवंश के पांच वर्ष के राजकुमार कृष्णराजा वाडियार तृतीय को राज सिंहासन पर बैठा दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने इस महल को पुन: हिंदू वास्तुकला शैली में बनवाया। जो निर्माण 1803 तक पूर्ण कर लिया गया था। 1897 में राजकुमारी जयलक्ष्स्मानी के विवाह समारोह के दौरान इस महल में आग लग गई थी। जिसके कारण पूरा महल बर्बाद हो गया था। जिसके पुनर्निर्माण के लिए रानी केम्पा नानजमानी देवी ने प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन को नियुक्त किया। हेनरी इरविन ने महल को 1897 में बनाना शुरू कर दिया। लगभग 15 वर्षो के बाद 1912 में इसे पूर्ण रूप से बनाकर रानी को सौंप दिया था।

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