मनोरंजन

यादों की एक खिड़की

एक दिन यादों की एक खिड़की, मुझसे खुली रह गयी,
जिसमें से झाँक रहे थे, छिप-छिप कर कई;
कुछ बचपन की किलकारियाँ,
कुछ दादी-नानी की कहानियाँ,
कुछ रिश्तों की आजमाइशें,
कुछ मम्मी-पापा की हिदायतें,
कुछ बेपरवाह बारिश की बूंदें,
कुछ अपनों की उम्मीदें,
कुछ किस्से, कुछ यादें,
कुछ लम्हें, कुछ वादें,
कुछ रूहानी सी मुलाकातें,
कुछ न भूलने वाली बातें,
कुछ अनकहे एहसास,
कुछ भावनाओं भरे जज़्बात,
कुछ जाने-पहचाने अपनें,
कुछ धुँधले हो चुके सपनें,
वह सब थे वहाँ पर,
वापस जाना नामुमकिन था जहाँ पर,
हम भी पलटकर, फिर खड़े हो गये,
छोड़ कर बीती यादें, फिर आज में खो गये।
★★★★★
—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—

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