एक तपस्वी के प्रति गरुड़ की धारणा

एक तपस्वी के प्रति गरुड़ की धारणा
एक बार गालव नाम के एक ऋषि थे, जिन्हें एक जरूरी और महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाना था। उन्होंने अपने मित्र गरुड़, से बात की और उनसे उनके गंतव्य तक पहुँचाने के लिए कहा। एक लंबी दूरी तय करने के बाद, गालव ने अपने मित्र गरुड़ से कहा कि अब उन्हें उस गंतव्य तक जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
इसलिए उन्होंने गरुड़ से वापस लौटने को कहा। गरुड़ ने कहा, 'आगे समुद्र के तट पर एक पहाड़ी है; हम वहीं विश्राम करेंगे, कुछ खाएंगे, और लौट आएंगे। पहाड़ी पर उतरते हुए उन्होंने शांडिली नामक एक स्त्री को देखा, जिसके तपस्या के कारण उसके चेहरे पर किसी अकथनीय शक्ति का तेज था। उन्होंने उसे सबसे सम्मान पूर्वक प्रणाम किया; और उसने उन्हें पौष्टिक और संतोषजनक भोजन दिया, और वे दोनों पृथ्वी पर गहरी नींद में सो गए।
जब गरुड़ जागा, तो उसने देखा कि उसके पंख उसके शरीर से अलग हो गए हैं, और उनके बिना वह मांस के लोथड़े जैसा दिखाई दे रहा था। ऐसा लग रहा था कि यह किसी तरह की सजा है। ऋषि ने गरुड़ से पूछा, 'क्या आपने महिला के बारे में कुछ अपमानजनक सोचा ?
गरुड़ ने कहा, "मैंने सोचा कि यह तपस्वी महिला तपस्या करने वाली पहाड़ी के बीच इस परित्यक्त स्थान पर क्यों रहती है ? इतने सारे तीर्थ स्थान हैं और उन्हें वहीं रहना चाहिए।
तब उन्हें अहसास हुआ कि संत या वैष्णव जहां भी रहते हैं, वह तीर्थ स्थान है और हमें कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि यह एक निंदनीय जगह है और इस अपमानजनक सोच के लिए उन्होंने अपने पंख खो दिए। बाद में उन्होंने शांडिली से क्षमा मांगी और अपने पंख वापस पा लिए।