जानिये होली में क्यों खेले जाते हैं रंग, और किसने खेली पहली होली

आपने होली के बारे में एक कहानी सुनी होगी कि राजा हिरण्यकशयप के कहने पर उनकी बहन होलिका , जिसको अग्नि का वरदान था कि आग उसे जला नहीं पायेगी, जिसके बाद हिरण्यकशयप ने अपने पुत्र और विष्णु भक्त प्रह्लाद को लेकर होलिका को अग्नि में बैठने के लिए आदेश दिया था लेकिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद से प्रह्लाद बच गए और होलिका जल गई तब से होली मनाई और जलाई जाती है।
होली जलाई जाती है यह ठीक है मगर होली खेली क्यों जाती है, और होली पर रंग लगाना और गाने गाना और बजाना क्यों होता है ये जानना भी जरुरी है , तो आइए जानते है। पहला 28 फरवरी 2023 को होलिकाष्टक लगे थे क्योकि हरिहर पुराण के अनुसार जब देवों के देव महादेव , कैलाश पर अपनी समाधि में लीन थे तब तारकासुर के वध के लिए कामदेव और .रति ने अपने नृत्य से भगवान शिव की समाधि भंग कर दी थी जिसके फलस्वरूप महादेव ने क्रोध की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था जिससे सभी देवता नाराज हो गए थे इसलिए होलिकाष्टक लगा और सभी देवता उस समय क्रोध में रहते हैं। मगर कामदेव के भस्म होने पर उनकी पत्नी रति के विलाप पश्चताप और माफ़ी मांगने से, भगवन शंकर ने कामदेव को जिन्दा कर दिया तब कामदेव और रति ने ब्रजमंडल में ब्रह्म भोज का आयोजन किया जिसमें सभी देवी और देवताओं को बुलाया गया ( ब्रह्महरिहर पुराण के अनुसार), ब्रह्म भोज में आनंद के मारे भगवान शंकर ने डमरू तो भगवान विष्णु ने बांसुरी बजाई थी, माता पार्वती ने वीणा पर स्वर लहरियां छेड़ीं तो माता सरस्वती ने बसंत के रागों में गीत गाए।
कहते हैं कि तभी से धरती पर हर साल फाल्गुन पूर्णिमा में गीत, संगीत और रंगों के साथ होली का मनाई गई, पहली होली महादेव ने खेली थी, और उनको चन्दन का टीका रति ने लगाया था।