मां विंध्यवासिनी मंदिर, विंध्याचल धाम मिर्जापुर में एक सिद्ध शक्तिपीठ

मां विंध्यवासिनी मंदिर जो विंध्याचल धाम के रूप में भी प्रसिद्ध है, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के विंध्याचल शहर
में स्थित है। मां विंध्यवासिनी, विंध्याचल
धाम मिर्जापुर की अधिष्ठात्री
देवी हैं। मां विंध्यवासिनी, मां
दुर्गा का ही एक रूप है। विन्ध्य पर्वत श्रृंखला में स्थित यह मंदिर भारत
के प्रतिष्ठित शक्ति पीठों में से एक है तथा एक सिद्ध शक्तिपीठ है। विंध्याचल
धाम में मां विंध्यवासिनी का आशीर्वाद पाने के लिए भारी संख्या में भीड़ उमड़ती
है। विंध्यवासिनी देवी को काजला देवी के नाम से भी जाना जाता है।
पावन शहर विंध्याचल गंगा नदी के तट पर दो अत्यन्त
प्रसिद्ध हिंदू शहरों प्रयागराज और वाराणसी के मध्य स्थित है। विन्ध्य
पर्वत श्रृंखला को पावनी गंगा नदी विन्ध्याचल में ही स्पर्श करती है, इसीलिए विंध्यक्षेत्र का आध्यात्मिक रूप से
विशेष महत्व है। एक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने अपने वनवास काल में पत्नी सीता
और भाई लक्ष्मण के साथ इस स्थान और आसपास के क्षेत्रों में भ्रमण किया था।
दुर्गा सप्तशती में मां विंध्यवासिनी को महिषासुर
मर्दिनी के रूप में वर्णित किया गया हैं। किंवदंती के अनुसार, देवी दुर्गा और दानव महिषासुर के बीच प्रसिद्ध युद्ध विंध्याचल
में ही हुआ था। विंध्याचल दुनिया का एकमात्र स्थान है जहां देवी के तीनों रूपों, लक्ष्मी, काली और सरस्वती को समर्पित विशिष्ट मंदिर हैं।
विंध्यवासिनी मंदिर से 8 किमी दूर विन्ध्य पर्वत श्रृंखला की एक पहाड़ी पर मां सरस्वती देवी
का मंदिर स्थित है जिसे अष्टभुजा मंदिर कहा जाता है। विंध्यवासिनी मंदिर से
6 किमी दूर एक गुफा में मां काली देवी का मंदिर स्थित है जिसे काली खोह
मंदिर कहा जाता है। राक्षस रक्तबीज को मारने के लिए देवी दुर्गा जी ने माँ
काली का अवतार लिया था। तीनों देवियों के मंदिरों का दर्शन व उनसे बने त्रिकोण की परिक्रमा का विशेष महत्व है। देश के कोने-कोने से आने वाले तीर्थयात्री तीनो देवियों के मंदिरों से बने त्रिकोण की परिक्रमा करते हैं।
विंध्याचल राष्ट्रीय राजमार्ग NH 2 अर्थात दिल्ली-कोलकाता रोड के माध्यम से सड़क
द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। माँ विंध्यवासिनी मंदिर वाराणसी से लगभग 63 किमी दूर है। उत्तर प्रदेश
राज्य परिवहन की नियमित बस सेवाएं विंध्याचल को इलाहाबाद, वाराणसी और आसपास के शहरों से जोड़ती हैं।