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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा जयशंकर प्रसाद एवं महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘, सुमित्रानन्दन पंत एवं लक्ष्मीनारायण मिश्र की स्मृति में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का  आयोजन आज पूर्वाह्न 10.30 बजे से हिन्दी भवन के प्रेमचन्द सभागार में किया गया।  

दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के उपरान्त कार्यक्रम में वाणी वंदना सर्वजीत सिंह मारवा द्वारा प्रस्तुत की गयी। अभ्यागतों का स्वागत करते हुए के0पी0द्विवेदी निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा- जयशंकर प्रसाद एवं महादेवी वर्मा की स्मृति समारोह में आप सबका स्वागत अभिनन्दन एवं वंदन है। 

डाॅ0 हरीश कुमार शर्मा ने कहा- जयशंकर प्रसाद जी की पहचान छायावादी कवि के रूप में है। प्रसाद जी एक सम्पूर्ण साहित्यकार हैं। जयशंकर प्रसाद की नाटक के क्षेत्र में अप्रतिम देन है। वे  नाटक के सशक्त हस्ताक्षर हैं। काव्य के क्षेत्र में प्रसाद की कामायनी, लहर, झरना, आँसू जैसी ऐतिहासिक रचनाएं लिखीं। उनकी रचनाएं ऐतिहासिकता पर आधारित हैं। प्रसाद नव जागरण कालीन साहित्यकार हैं।

उनका साहित्य राष्ट्रपे्रम से ओत-प्रोत है। वे अपनी रचनाओं मे सामाजिक समस्याओं को सजगता से देखते हैं व उनका निराकरण का प्रयास करते हैं । ‘ध्रुवस्वामिनी‘ रचना  स्त्री विमर्श पर आधारित रचना है। उन्होंने चन्द्रगुप्त, स्कन्द गुप्त जैसे ऐतिहासिक नाटकों की रचना की। 

डाॅ0 वशिष्ठ अनूप ने कहा- जयशंकर प्रसाद का काव्य दर्द से भरा हुआ है। ‘आँसू‘ रचना दर्द भरी रचना है। प्रसाद जी का जीवन काफी दुःखों भरा था। रचनाएं पीड़ा प्रधान हैं । वे बहुआयमी प्रतिभा के धनी थे। उनके लेखन में कविरूप का विस्तार मिलता है। उनका विपुल लेखन दुःख व चिन्ता से भरा हुआ है। प्रसाद की रचनाएं राष्ट्रीय चेतना व कल्पना से ओत-प्रोत हैं। ‘कामायनी‘ उनकी साहित्य जगत को एक अभूतपूर्व देन है। उन्होंने मृत्यु पर जीवन के विजय की कल्पना की। 

प्रसाद ने अपनी रचनाओं में स्त्री को काफी ताकतवर बताया है व पुरुष पलायनवादी सुख की खोज में है। उनका स्त्री पात्र पलायनवादी पुरुष को जीवन की तरफ अग्रसर करती हैं। उनकी काव्य रचनाओं में ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति साक्षात समाहित होकर नृत्य करती है। काव्य में भी नाटक तत्व भरा हुआ है। नारी तुम केवल श्रद्धा हो‘ ..... प्रसिद्ध पंक्तियों में से है। 

डाॅ0 विद्योत्तमा मिश्र ने कहा-प्रसाद का प्रे्रम संकीर्णताओं से मुक्त कर देता है। प्रसाद का काव्य पे्रम रस से पूर्ण है। वह पे्रम प्रकृति, राष्ट्र की माटी से जुड़ा हुआ है। राष्ट्र की स्मृति पाथेय  बन जाती है। उनका पे्रम सृजन की पे्ररणा है। प्रसाद प्रकृति में रमते हैं प्रकृति सचेतन है प्रकृति के  मन पर मुग्ध होते है प्रकृति संघर्ष व कर्म की पे्ररणा प्रदान करती है। धरती पर जीवन की पुकार है। वे कहते हैं शक्ति का उन्माद होना अच्छी बात नहीं है। प्रकृति उपमान के रूप में उनके काव्य में  प्रस्तुत है। उनकी रचनाएं देश पे्रम राष्ट्रीय स्वर, राजनीतिक, सामाजिक तत्वों से ओत-प्रोत हैं। वे संस्कारी व आस्थावान थे। प्रसाद के समय में बौद्धिक गुलामी आहत करती है। उनकी कविताओं में  राष्ट्रीय स्वर दिखायी पड़ता है। जो शासक मन पर शासन करते हैं,  वही अतीत व वर्तमान को जोड़ने में सेतु का काम करते हैं। डाॅ0 कृष्णा जी श्रीवास्तव ने कहा- प्रसाद जी के समय देश बड़ी त्रासदी के दौर से गुजर  रहा था।

हमारे राष्ट्र पर पाश्चात्य का प्रभाव था। प्रसाद ने अपने नाटकों एवं काव्य से भारतीयों में  नव चेतना जागरण करते है। प्रसाद के समय के नाटकों में स्तरीयता न होने के कारण वे काफी  उदासीनता का अनुभव करते रहे। उसको देखते हुए अपने नाटकों में परिष्कृत करने का प्रयास  किया व नाटक को एक नई दिशा प्रदान की। ‘आर्यावृत में उन्होंने भारत वर्ष की व्यापक चर्चा की  है। ‘चन्द्रगुप्त‘ उनकी प्रमुख नाटय रचना वे राष्ट्रीयता के प्रचारक के रूप में हमारे सामने आते हैं। उनकी रचनाएं राष्ट्रीयता व देश पे्रम से परिपूर्ण हैं। प्रसाद हमारे बीच अपने वाङमय के माध्यम से  सदैव स्मरणीय रहेंगे। 

द्वितीय-सत्र अपराह्न 2.00 बजे से 4.बजे तक प्रयागराज से पधारी डाॅ0 स्नेह सुधा ने कहा- महादेवी रेखाचित्रों में जीवन का आंशिक चित्रों का समावेश मिलता है। रेखाचित्रों में शब्दों के माध्यम से साहित्य को सजाने संवारने का कार्य किया जाता है। ‘अतीत के चलचित्र‘ में महादेवी जी के जीवन दर्शन, समाज व परिवार का वर्णन मिलता है। वे अपने रेखाचित्रों में स्त्री के प्रति होने वाले अन्याय व शोषण का चित्रण मार्मिक शब्दों में करती हैं । उनके साहित्य में स्त्री शुद्ध पवित्र आत्मा का प्रतीक हैं। महादेवी नारी वर्ग के लिए सशक्त आधार प्रदान करती हैं। वे हिन्दू धर्म में व्याप्त धार्मिक पाखंडता का विरोध करती नजर आती हैं । उनके रेखाचित्रों में हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।    

वाराणसी से पधारे डाॅ0 सत्य प्रकाश पाल ने कहा-महादेवी वर्मा की कविताओं में पीड़ा है अवसाद है। मधुर, मधुर मेरे दीपक जल ...... महादेवी को आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। वे अपनी कविताओं में समय से टकराती नजर आती हैं। उनकी कविताओं में संस्मरणों, रेखाचित्रों में स्त्रियों के सम्बन्ध में व्यापक चित्रण मिलता है। उनकी कविताएं स्त्रियों की व्यथा का सुन्दर वर्णन करती हैं। उनके काव्य में छायावाद में रहस्यवाद दिखायी पड़ता है। उन्होंने स्त्री व्यथा को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। उनके जीवन में वेदना ‘रश्मि रचना में हर्ष और उल्लास दिखायी पड़ता है। उनके काव्यों में लौकिकता से अलौलिकता को ले जाने की क्षमता है। वे अपनी कविताओं के माध्यम से समय को पुष्पित करने का प्रयास करती नजर आती हैं। वे सहजता की पक्षधर हैं। जब वे यह कहती हैं एकला चलो तो उनके साहित्य पर रवीन्द्रनाथ टैगोर का भी प्रभाव दिखायी पड़ता है।
 
डाॅ0 ममता तिवारी ने कहा- महादेवी के काव्य में छायावादी तत्वों का समोवेश है। वे लोक मंगल व युगबोध को ध्यान में रखकर साहित्य रचना करती है। वे आध्यात्मिकता व दार्शनिक चेतना प्रमुख रूप से उनकी रचनाओं में मिलती हैं। छायावादी कविताओं में आरम्भ से अंत तक जिज्ञासा है कौतूहल है। उनकी रचना में ‘दीपक‘ प्रिय प्रतीक है। दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाशित करता है। प्रकृति आत्मा और परमात्मा के बीच सामंजस्य की भूमिका निभाती है। साधक एवं साध्य के मध्य एकात्मकता ही रहस्यवाद का आधार है। उनकी रचनाओं में द्वैत और अद्वैत का सामजस्य व द्वन्द्व दिखायी पड़ता है। आत्मा व परमात्मा का सम्बन्ध चिर सत्य है। महादेवी विरह की कवयित्री के रूप में साहित्य जगत में विद्यमान हैं। कथारंग के माध्यम से नूतन वशिष्ठ के निर्देशन में निराला की कहानी ‘देवर का इंद्रजाल‘ का पाठ कनिका अशोक, अपूर्वा अवस्थी, सुवंश सक्सेना ‘अंकुर‘ ने किया साथ ही जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘छोटा जादूगर का पाठ अनुपमा शरद व सोम गांगूली द्वारा किया गया। डाॅ0 अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कार्यक्रम का संचालन किया।  

इस संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया।