होली के दिन लक्ष्मण को यह अधिकार मिला था

होली के दिन लक्ष्मण को यह अधिकार मिला था---
एक दिन रामजी ने लक्ष्मण से उनके दुखी रहने का कारण पूछा। तब लक्ष्मण बोले- प्रभु, माता सीता मुझे न तो नहीं कहती लेकिन मुझे भीतर भी नहीं बुलातीं। मैं आपकी चरणसेवा के बिना नहीं जी सकूंगा। रामजी बोले- वह मेरी धर्मपत्नी है और इस तरह उसका प्रथम अधिकार है। तब लक्ष्मण जी ने श्रीराम को कुछ उपाय बताने को कहा।
रामजी बोले- एक उपाय है। चार दिन बाद होली का त्योहार आने वाला है। रघुकुल में यह रीति है कि इस दिन देवर भाभी के साथ होली खेलते हैं और संध्या में बड़ों की उपस्थिति में देवर भाभी से जो कुछ भी मांगता है वह भाभी को देना पड़ता है। तुम होली के दिन होली खेलने के बाद संध्या में जब सीता से मांगने जाओ तो अपनी इच्छा पूरी कर लेना।
रामजी की युक्ति से लक्ष्मण प्रसन्न हो गए और होली का बेसब्री से इंतजार करने लगे। चार दिन पूरे हुए और होली आई। सीताजी के साथ लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने पूरी पवित्रता के साथ होली खेली। शाम होते ही सभी सीताजी के पास चरणस्पर्श के लिए पहुंचे। भरत और शत्रुघ्न के बाद लक्ष्मण जी की बारी आई।
लक्ष्मण ने माता सीता के चरण स्पर्श किए। सीता जी ने लक्ष्मण को आशीर्वाद स्वरूप कुछ मांगने को कहा, तब लक्ष्मण बोले- ‘माता! होली की और कोई भेंट तो मुझे नहीं चाहिए, केवल श्री राम की चरण सेवा का अधिकार मेरा बनें।
इतना सुनते ही सीताजी बेहोश हो गयीं। क्योंकि प्रभु राम की चरणसेवा उनका अधिकार था और लक्ष्मण जी को यह अधिकार देकर वह रघुवंश की पुत्रवधु होने का वचन नहीं तोड़ सकती थीं। लक्ष्मण जी दौड़े-दौड़े श्रीराम के पास पहुंचे और माता सीता के बारे में बताया।
श्रीराम ने लक्ष्मण को एक युक्ति बताई, जिसे सुनकर वे सीताजी के पास पहुंचे और उनके कान में कहा, माता! चरणसेवा के अधिकार में हम दोनों बंटवारा कर लें। दायां चरण मेरा और बायां चरण आपका. आप जब प्रभु के चरणों की सेवा करने जाएं तो मुझे भी बुला लिया करें। इतना सुनकर सीता जी की मूर्च्छा समाप्त हो गई और होली के पावन दिन पर ही लक्ष्मण जी को प्रभु के चरणसेवा का अधिकार प्राप्त हुआ।