कतरा-कतरा बह चला

कतरा-कतरा बह चला,
जीवन के भागमभाग में,
भविष्य का क्या सोचे अभी,
पहले संभल तो जायें आज में,
न कोई सौंदर्य मन को भा रहा,
न ही स्वर लगते मधुर अब साज में,
न मोहमाया मन को भा रही,
न ही मन लग रहा बैराग्य में,
हक़ीकत कुछ और ही होती है,
जैसी दिखती है अक्सर ख़्वाब में,
खुद से खुद को मिलाने का भी,
लगता है वक़्त नहीं मेरे भाग में
ये कैसी विचित्र स्थिति है, जैसे कि-
एक पैर डूबा हो गहरे पानी में,
और दूजा दहकती हुई आग में,
कतरा-कतरा बह चला,
जीवन के भागमभाग में।
---(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी")---
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नोट: मेरी पिछली रचना आप इस लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं- ज़िन्दगी तूने मुझे: https://medhajnews.in/news/entertainment/poem-and-stories/life-and-me
*Cover Image: Your quote.in