जीवन के प्रति कुछ संवेदनायें

जीवन के भागम-भाग में,
कुछ वक्त बचाना मुश्किल है,
अपनों के संग फुर्सत के,
कुछ पल बिताना मुश्किल है;
दुनियादारी के फेहरिस्त में
खुद का वज़ूद ही गुम सा है,
भूत-भविष्य की चिंता में,
वर्तमान को जीना मुश्किल है;
आगे बढ़ने की दौड़ में,
सब अपनों को ही भूल रहे,
हमको पोषित करने हेतु,
जिन्होंने कितने शूल सहे;
सिर्फ अपने स्वार्थ का ही सोचे,
क्या हम इतने कम-दिल हैं?
थोड़ा वक्त उन्हें भी दे दे,
हमारे प्रेम के जो काबिल हैं;
दुनिया में बढ़ती नफरत से,
रिश्तों की डोरी टूट रही,
इस दूषित वातावरण से,
हमारी सृष्टि भी हमसे रूठ रही,
दूसरा कोई और नहीं,
हम खुद ही अपने कातिल हैं,
तृष्णा से दम है घुटता,
जबकि पास में जल ही जल है;
धन-दौलत के लिए न जाने,
कितने ही कत्ले-आम हुए,
कुछ झूठे लोगों के कारण,
कुछ सच्चे भी बदनाम हुए,
मतलब-परस्त इस दुनिया में,
न जाने कितने सन्दिल हैं,
दौलत कमाना तो आसान है,
पर विश्वास कमाना मुश्किल है;
रिश्तों के बाँधें रखने के लिए,
बस दो मीठे बोल काफी हैं,
इनकी मर्यादा टूटे तो,
नहीं उसकी कोई माफी है,
दौलत से भरे खाली घर में,
नहीं होता कुछ भी हासिल है,
चलते-चलते पग हैं दुखते,
पर दूर अभी मेरी मंजिल है.....
......पर दूर अभी मेरी मंजिल है।
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---(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी")---
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