अधूरी नज़्म

अधूरी नज़्म, अधूरा फ़साना हो तुम,ओ जान-ए-जां मेरा गुजरा ज़माना हो तुम;तुझ से मेरी वो अधूरी मोहब्बत भी,पूरी ही थी हर मायने, हर ख्यालात में;सच कहता हूँ मैं, आज भी मेरे लिए,मेरा वही इश्क़, सूफियाना हो तुम;हाँ, माना नहीं चल सके हम साथ में,क्योंकि इस ज़माने को ये मंज़ूर न था,पर जो बीता था तुम संग, बेपरवाह, बेख़ौफ़, वही खुशनुमा सा, मेरा वक्त पुराना हो तुम;बहुत ग़ज़लें बुनी, बहुत शायरी लिखी मैंने,पर मेरे अधूरी नज़्मों का, नज़राना हो तुम, गीतों के सागर में, बहुत डुबकियाँ लगायी मैंने,पर जिसने सुकूँ बख्शा, वही मीठा तराना हो तुम।*****
(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी")
नोट: मेरी पिछली रचना आप इस लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं-