खूबसूरत उलझनें

खूबसूरत उलझनें हैं वो, जब मैं तुझसे उलझ जाती
हूँ;
प्यारी हरकतें हैं वो, जिन्हें सोच मैं मुस्कुराती
हूँ।
कभी चिढ़ती हूँ , कभी रूठती हूँ,
तो कभी झट से मान जाती हूँ।
कभी लड़ पड़ती हूँ तुझसे, बिन बात पर ही;
पर कभी तेरी एक नज़र से ही, जाने कितना शरमाती
हूँ?
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तू है मेरे पास खुदा की, एक सौगात की तरह;
कभी-कभी इस बात पर, खुद पे ही इतराती हूँ।
पता नहीं तूने कभी महसूस, किया भी है या नहीं?
कि जब सामने तू होता है, मैं फूलों सा निखर जाती
हूँ।
एहसास नहीं तुझे कि 'तू कितना अनमोल है मेरे
लिये',
तेरे ओझल होते ही, टूटते तारे सा मैं बिखर जाती
हूँ।
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सजती हूँ, सँवरती हूँ बस तेरे ही लिये मैं;
लिखती हूँ तुझको नज़्मों में, गाती हूँ तुझको
गीतों में;
मिलती हूँ तुझसे नींदों में, तुझे सँजोती हूँ
यादों के फीतों में
और तेरी एक छुअन से ही, मैं मोम सा पिघल जाती
हूँ।
अपने दिल की कह दी मैंने, तेरे दिल की मैं क्या
जानूँ?
अब तू ही बता कि -"क्या तुझे भी मैं बन्द पलकों में नज़र आती
हूँ?"
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☆☆(Copyright@भावना मौर्या "तरंगिणी")☆☆
नोट: मेरी पिछली रचना आप इस लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं-ये कैसी-कैसी ज़िन्दगी...? https://medhajnews.in/news-preview/entertainment/poem-and-stories/what-kind-of-life-is-this