वो भी इक दौर था, ये भी एक दौर है...!!

वो भी इक दौर था,रिश्तें निभाने वाला,ये भी एक दौर है,रिश्तें गिनवानें वाला;
वो भी इक दौर था,इश्क छिपाने वाला,ये भी एक दौर है,इश्क दिखाने वाला;
वो भी इक दौर था,नज़रों से सब कह जाने का,ये भी एक दौर है,कहा हुआ भी न सुन पाने का;
वो भी इक दौर था,मोहब्बत में मर-मिट जाने का,ये भी एक दौर है,जान लेकर प्रेम जताने का;
वो भी इक दौर था,जब माँ-बाप का सजदा करते थे,ये भी एक दौर है,जब माँ-बाप को ही रुसवा करते हैं;
वो भी इक दौर था,जब संस्कारों में बच्चे पलते थे, ,ये भी एक दौर है,जब अहंकारों में बच्चे पलते हैं;
वो भी इक दौर था,जब पराये भी अपने लगते थे,ये भी एक दौर है,जब अपने भी गैर ही लगते हैं;
वो भी इक दौर था,जब खेल-कूद ही व्यायाम था,ये भी एक दौर है,जब सबसे अहम् आराम है;
वो भी इक दौर था,जब उम्मीदों पर ही ज़िन्दगी कट जाती थी,ये भी एक दौर है,जब उम्मीदें ही मसल दी जाती है;
वो भी इक दौर था,जब लोग सच में जीवन जीते थे,ये भी एक दौर है,जब जीवन काटने को जीना कहते हैं;
वो भी इक दौर था,जब सबसे महत्वपूर्ण आत्म सम्मान था,ये भी एक दौर है,जब व्यक्ति को प्यारा सिर्फ उसका अभिमान है;
वो भी इक दौर था,जब रिश्तों में सच्चाई होती थी,ये भी एक दौर है,जब रिश्तों की बस दिखाई होती है;
वो भी इक दौर था,जब पत्थर में भी भगवान दिखते थे,ये भी एक दौर है,जब इंसानों में ही शैतान दिखते हैं;
वो भी इक दौर था,जब हम पिछड़े होकर भी आगे ही थे,ये भी एक दौर है,जब जितना आगे बढ़ते हैं उतना ही पीछे हो जाते हैं।************
(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी")
नोट: मेरी पिछली रचना आप इस लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं-