एहसासों की डोर

हर लम्हां ना जी पाने की, कसक सी लगती है,सब कुछ कह लेने पर भी, कुछ हिचक सी लगती है;पास रहने पर भी लगता है कि, हैं मीलों की दूरियाँ,पर जब दूर तुम होते हो, तो मुझे तेरी महक सी लगती है;
ज़ज्बातो को बयाँ करने में, कुछ कमी सी लगती है,जलता है सूरज पर, कुछ नमी सी लगती है;कहने को तो कुछ सालों- का ही रिश्ता है हमारा,पर तेरे घर की ये धरती मुझे, अपनी सरज़मी सी लगती है;
एहसासों की डोर से, बँधे हैं हम एक-दूजे से,पर तेरी गैर-मौज़ूदगी मैं, जिंदगी थमी सी लगती है;हर एक पल मेरी आँखे, ढूँढती रहती हैं तुझी को,और तेरे आगोश में आते ही, पूरी हुई हर कमी सी लगती है;
प्यार का एहसास अगर, होता है अकेलेपन में,तो कभी-कभी ये दूरी, ज़रूरी सी लगती है;तू सामने रहे और, निहारती रहूँ तुझे मैं,तेरे हँसने पर ये दुनिया, सिंदूरी सी लगती है;
तेरा हाथ थामे-थामे,बीत गये इतने बरस,अब तेरे बिना ये जिंदगी, अधूरी सी लगती है;तेरा प्यार और विश्वास ही- तो हिम्मत है मेरी,तेरे होने पर जीवन में घुली हो, कस्तूरी सी लगती हैI---(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी")---
नोट: मेरी पिछली रचना आप इस लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं-
गुस्ताखियाँ - https://medhajnews.in/news/entertainment/poem-and-stories/beautiful-errors