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एहसासों का काफ़िला-2

एहसासों का काफ़िला-2

(1)
सच्चा प्रेम वही है,
जिसमें अपने प्रिय से कुछ भी कहने से 
पहले कभी भी कुछ सोचना न पड़े;
जिसमें उनके सामने दिल खोलने के लिये,
कभी भी अपने मन को रोकना न पड़े;
जिसमें जुबां और नैनों की भाषा एक ही हो,
और अश्रुओं को आँखों में समेटना न पड़े,
सच्चा प्रेम वही है।
★★★★★  

(2)
यूँही सादगी में लिपटी हुई,
इन झुकी हुई निगाहों संग,
तुम दिल में यूँ उतरती गयी,
जैसे व्योम में इंद्रधनुषी रंग,
अधर भी गुनगुना उठे मेरे,
मन में भी छिड़ गई तरंग,
बस तू ही है मेरी जुस्तजू,
मेरे डोर की तू ही है पतंग।
★★★★★  

(3)
जाने कितने ही लम्हों की,
कश्तियों पर सवार हूँ मैं,
जाने क्या पाने की ज़िद चढ़ी है,
जाने किस तिलिस्म में गिरफ्तार हूँ मैं?
जो बीत रहा उसके बिछड़ने की आह है,
जो आया नहीं उसे पा लेने की चाह है,
क्यों नहीं सिर्फ़ आज की कश्ती में,
हो पा रही सवार हूँ मैं,
जाने क्यों ख़्वाहिशें थमती ही नहीं,
जाने किसकी चाहत की तलबगार हूँ मैं?
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----(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी")----

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एहसासों का काफ़िला-1: https://medhajnews.in/news/entertainment/poem-and-stories/train-of-feelings
शब्द बोलते हैं-3: https://medhajnews.in/news/entertainment/poem-and-stories/word-speaks-3