शब्द बोलते हैं-3

(1)
समुद्र सी है ये दुनिया और एक बूंद से हम हैं,
सब कुछ है पास में फिर भी अपूर्ण से हम हैं;
मन में है अनगिनत ख्याल और असीमित ख्वाहिशें,
पर व्यक्त करने में ताला से बंद संदूक से हम है।
(2)
तेरी नज़रों के रम्ज़ से, वाकिफ़ हैं हम भी,
पर वो लफ़्ज़ तेरे लबों से, सुनने की ख़्वाहिश है मुझे,
तेरे दिल के घरौंदे में, कोई मुसाफिर नहीं,
ज़िन्दगी भर के लिए, साँझेदार बनने की ख़्वाहिश है मुझे।
(3)
कभी-कभी तो ओ जानम, ज़रा सा बोल देते तुम,
है क्या दिल में तेरे आखिर, कभी तो अपने मन को,
मुझ से खोल देते तुम, है हर ख्वाहिश बस तुम्हीं से,
कभी तो अपनी मोहब्बत का, मुझे माहौल देते तुम।
(4)
जब तेरी याद आयी तो मुस्कुरा उठे हम,
तेरी प्रेम की धुन को ही गुनगुना उठे हम,
तेरी नजरों में बहुत हसरतें दिखती हैं मुझे,
पर वो अधरों पर आयें तो दिल लगा उठे हम।
(5)
किसी की ज़िन्दगी में मात्र,
हिस्सा नहीं, बहुत खास बनना है;
उसकी ज़िन्दगी में सिर्फ़ कोई,
किस्सा नहीं, उपन्यास बनना है।
★★★★★
----(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी")----
*(रम्ज़: इशारे; आरिज़=गाल)
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