हमेशा ही आसान राह ली है तुमने

सुनो, मैंने सुना है कि तुम,
कुछ भी बहुत गहराई से पढ़ते हो,
पर कभी मेरी इन आँखों की,
गहराइयों की थाह ली है तुमने?
शायद नहीं, क्योंकि इनमें,
डूबने से, डरने लगे थे तुम भी,
इसलिये, रास्ते बदलकर हमेशा ही,
आसान राह ली है तुमने;
जानते हो, खुद को बदलती गयी मैं,
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे ही वास्ते,
पर क्या मेरे जज़्बातों की कभी,
कोई भी परवाह की है तुमने?
शायद नहीं, क्योंकि डरने लगे थे,
तुम जिम्मेदारियों के बंधनों से,
इसलिये, रास्ते बदलकर हमेशा ही,
आसान राह ली है तुमने;
समझते हो तुम अच्छी तरह, कि-
मेरे लिए, मेरी पूरी दुनिया हो तुम,
पर क्या कभी अपनी दुनिया में,
मुझे ले जाने की कोशिश की है तुमने?
शायद नहीं, क्योंकि सिर्फ खुद की,
ख़ुशी के लिए जीने की आदत है तुम्हें,
इसलिये, रास्ते बदलकर हमेशा ही,
आसान राह ली है तुमने।
कहते हो तुम, कि मैं तुम्हारे अनकहे,
अल्फाज़ो को भी समझ जाती हूँ,
पर क्या कभी मेरे हिलते लबों पर,
कोई निश्छल निग़ाह की है तुमने?
शायद नहीं, क्योंकि तुमने कभी,
मेरे मन को समझना ही न चाहा था,
इसलिये, रास्ते बदलकर हमेशा ही,
आसान राह ली है तुमने।
★★★★
---(Copyright@भावना मौर्य "तरंगिणी,")---
नोट: मेरी पिछली रचना आप इस लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं-
वो भी इक दौर था, ये भी एक दौर है...!!- https://medhajnews.in/news/entertainment/poem-and-stories/that-too-was-a-time-this-is-also-a-time