'गुरु माँ वंदना'

'गुरु माँ वंदना'
तू श्रद्धा है तू ममता है,
तू प्राण दायिनी है गुरू माँ,
तेरे आशीष से लाखों घर में
प्रकाश के दीप जले है गुरु माँ ||
मातृत्व का तू पाठ पढाती है,
आशाओं के तू दीप जलाती,
सूखे पुष्प परिजन को मुसकाती,
ऐसी तेरी छति है गुरु माँ ।।
श्रापित कहके बांझ कहे,
वह नारी सबका अपमान सहे,
उस नारी की पीड़ा को मातृत्व के
अमृत से सम्मान दिलाती है गुरु माँ ||
कितनों ने थी आस छोड़ी,
कितनो ने निराशा को गले लगाया
तब प्रकाश दायिनी बनकर
उनके जीवन में तूने दीप जलाया,
ऐसे ही सद्कर्मों से सुसज्जित है
मेरी गुरु माँ ||